अनीति से कमाया धन अपने साथ बहुत विकार लेकर आता है । वह पूरी तरह से अनर्थ करने में सक्षम होता है । इसलिए सात्विक धन जो धर्मयुक्त है उसे ही अर्जित करना चाहिए । पुराने समय की बात है । एक जौ हरी एक गांव से दूसरे गांव जा रहा था । रास्ते में एक वृक्ष के नीचे खाना खाने रुका और उसका थैला जिसमें बहुमूल्य रत्न, हीरे और स्वर्ण मोहरे थी वह गलती से वहीं छूट गया । एक संत अपने शिष्य के साथ उधर से निकले । शिष्य की नजर उस धन पर पड़ी । उसने कहा कि इसे ले लेते हैं और सत्कर्म जैसे साधु सेवा, भंडा रे आदि में लगाते हैं तो वर्षों तक यह धन चलेगा । संत ने कहा कि यह अनीति का धन होगा इसलिए अनर्थ ही करेगा । किसी दूसरे का कमाया धन हमारे पास चोरी के रूप में अनीति से आएगा तो वह हमारा बिगाड़ ही करेगा । संत ने शिष्य को शिक्षा देने के लिए एक युक्ति की । वे दोनों एक पेड़ के पीछे छुप गए और संत ने कहा कि देखो आगे क्या होता है । तभी राजा के चार सिपाही घोड़े पर बैठकर उधर से गुजरे । उन्होंने धन देखा तो उनकी नियत बिगड़ गई । उन्होंने आपस में बात की कि राजकोष में जमा करने के बजाए हम चारों इसे आपस में बांट लेते हैं । ...
कुछ कार्य जगत में होने वाले होते हैं, कुछ का र्यों के होने में संदेह होता है क्योंकि वे दुर्गम होते हैं और कुछ कार्य पूर्णतया असंभव होते हैं । एक संत समझाते थे कि प्रभु के लिए कुछ भी करना पूर्णतया संभव है । जो कार्य जगत में होने वाले होते हैं वे प्रभु द्वारा हमारे लिए पूर्ण करवाए जाते हैं, जैसे दुकान या व्यापार का सफलतापूर्वक चलना या बेटे या बेटी का उचित समय उचित वर या वधु से विवाह होना । कुछ कार्य होने में संदेह होता है क्योंकि वे दुर्गम होते हैं पर वे भी प्रभु कृपा करके पूर्ण करवाते हैं जैसे किसी भयानक बीमारी से बचाना जिसके लिए डॉक्टर ने जवाब दे दिया, वह भी रोगी प्रभु कृपा से स्वस्थ हो जाते हैं और बच जाते हैं । कुछ कार्य असंभव होते हैं वह भी प्रभु कृपा से प्रभु संपन्न करवाते हैं, उदाहरण स्वरूप किसी को पुत्र योग ही नहीं है और फिर भी प्रभु कृपा करते हैं और उसके घर संतान का जन्म होता है । इसलिए संत कहते हैं कि जो कार्य जगत में होने वाले होते हैं वे तो प्रभु करते ही हैं, जो कार्य दुर्गम और कठिन होते हैं वे भी प्रभु करते हैं और जो पूर्णतया असंभव कार्य होते हैं वे भी प्रभु सफलता से अंज...