Skip to main content

06. भक्ति धन के आगे संसार का धन बहुत गौण

हम अपना पूरा जीवन सांसारिक धन कमाने में लगा देते हैं । हम इतना धन कमाना चाहते हैं कि हमारे लिए भी और हमारी आने वाली सात पीढ़ियों के लिए भी कम न पड़े । ऐसा करते हुए हम अपने जीवन के एक बहुत बड़े भाग का उपयोग इस हेतु कर देते हैं । प्रभु को प्रसन्न करने वाला और हमारा इक्कीस पीढ़ियों समेत उद्धार करवाने वाला भक्तिरूपी धन कमाना हम भूल जाते हैं । यह इतनी बड़ी चूक होती है कि इस चूक के कारण चौरासी लाख योनियों में फिर से हमें भ्रमण करना पड़ता है ।

श्री भक्तमालजी में भक्त श्री रांकाजी और भक्‍ता श्रीमति बांकाजी की कथा आती है । दोनों पति-पत्नी थे और प्रभु के परम भक्त थे । वे भक्ति से संपन्न थे पर धन से संपन्न नहीं थे । एक बार दोनों कहीं जा रहे थे तो भक्त श्री रांकाजी आगे चल रहे थे और रास्ते में उन्हें स्वर्ण मोहरें बिखरी हुई दिखी । वे भक्त थे इसलिए उनके मन में लालच नहीं आया और वे उन मुहरों पर मिट्टी डालने लगे जिससे वे ढक जाए और पीछे आ रही पत्नी की दृष्टि में नहीं आए । उन्हें डर था कि कहीं पत्नी की नियत मोहरें देखकर बदल न जाए । पत्नी ने जब देखा कि उनके पति स्वर्ण मुहरों के ऊपर मिट्टी डाल रहे हैं तो उन्होंने एक बहुत मार्मिक बात अपने पति से कही । पत्नी ने कहा कि आप मिट्टी पर मिट्टी क्यों डाल रहे हैं । यह सत्य है कि प्रभु के घर सोना, चांदी, हीरा, मोती सब मिट्टी के बराबर है । सच्चा धन जो प्रभु के पास है वह भक्ति का धन है । प्रभु मिट्टी देने में सोचते नहीं और सभी को दे देते हैं पर अपनी भक्ति लाखों में किसी एक बिरले को ही देते हैं । इसलिए यह शास्त्र की मान्यता है कि भक्ति धन के आगे संसार का धन बहुत गौण है ।

Popular Posts

01. प्रभु के दो बड़े प्रण

प्रभु ने श्रीमद् भगवद् गीताजी में अपने आश्रित का योगक्षेम वहन करने का प्रण लिया है । योगक्षेम दो शब्दों से बना है योग एवं क्षेम । योग का यहाँ अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि उनकी शरण ग्रहण करने वाले को जिस भी चीज की जब भी जरूरत होगी प्रभु उसे उपलब्ध करवाएंगे । क्षेम का अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि उसकी शरण ग्रहण करने वाले के पास जो भी है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे । यह दोनों कितने विलक्षण प्रभु के प्रण हैं कि जब भी जिस भी चीज की उसे जरूरत होगी वह प्रभु पहुँचाएंगे और जो उसके पास है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे । एक संत एक तीर्थ में रहने वाले पंडितजी की एक सत्य कथा सुनाते थे । एक पंडितजी नियमित रूप से मंदिर में श्रीमद् भगवद् गीताजी का पाठ करते थे और जो भी चढ़ावा आ जाता था उससे अपना घर चलाते थे । एक बार ऐसा हुआ कि तीन दिन तक कोई चढ़ावा नहीं आया और घर का चूल्हा बंद हो गया । उनकी पत्नी जो उनके जैसे श्रद्धावाली नहीं थी वह बिगड़ गई कि आपके प्रभु ऐसा योगक्षेम वहन करते हैं । पंडितजी को भी पत्नी की बात सुनकर उस समय गुस्सा आ गया और वे रात को मंदिर गए और श्रीमद् भगवद् गीताजी में लिखे योगक्षेम शब्द को ...

04. प्रभु की सेवा

हमारे घर के मंदिर में प्रभु का विग्रह होता है और हम उसकी सेवा करते हैं । सेवा करते - करते कभी हमें अपनी सेवा पर अभिमान आ जाए या लगे कि हम कितनी उत्कृष्ट सेवा कर रहे हैं तो प्रभु उस सेवा को स्वीकार नहीं करते । ऐसा नहीं हो इसलिए एक संत एक प्रसंग सुनाते थे । इस प्रसंग को बीच-बीच में पढ़ते रहना चाहिए । यह प्रसंग प्रभु श्री कृष्णजी और भगवती यशोदा माता के संदर्भ में है । श्री नंद बाबा के पास नौ लाख गौ - माताएं थी । इसमें से श्रेष्ठ नस्ल की एक लाख गौ - माताओं को उन्होंने प्रभु के लिए रखा था यानी   उनका दूध अन्य कोई काम   में नहीं लिया जाता था । एक लाख गौ - माताओं का दूध दस हजार गौ - माताओं को पिलाया जाता था । दस हजार गौ - माताओं का दूध एक हजार गौ - माताओं को पिलाया जाता था । एक हजार गौ - माताओं का दूध सौ गौ - माताओं को पिलाया जाता था । सौ गौ - माताओं का दूध दस गौ - माताओं को पिलाया जाता था । दस गौ - माताओं का दूध एक गौ - माता को पिलाया जाता था इन एक गौ - माता को पद्मगंधा गौ - माता कहा जाता था । इन पद्मगंधा गौ - माता का दूध प्रभु को पिलाने के लिए, दही, छाछ, मक्खन के लिए उपयोग में लि...

20. हर जगह प्रभु को साथ रखें

एक आदत बना लें कि जब भी घर से निकलें तो मन में कहें कि प्रभु साथ चलें और मार्गदर्शन करें ताकि मैं कोई गलती न कर बैठूं । घर में रहें तो प्रभु की  मनोमय (मन में बनाई गई प्रभु की प्रतिमा)  प्रतिमा अपने कार्यस्थल में लगा कर रखें और बीच-बीच में कार्य करते-करते प्रभु को देखें और बात करें कि मैं सही कार्य कर रहा हूँ की नहीं । पांडवों ने प्रभु श्री कृष्णजी को सदैव अपने साथ रखा और प्रभु ने पग-पग पर उनकी रक्षा की ।   सौ कौरव मारे गए पर पांचो पांडव प्रभु कृपा से बच गए । भगवती कुंतीजी , जो पांडवों की माता थी , उन्होंने प्रभु का एहसान मानते हुए सारे प्रसंग गिनाए जब प्रभु ने साक्षात रूप से पांडवों के प्राणों की रक्षा की । इतना बड़ा युद्ध , अपने से विशाल सेना और अनेक महारथियों के होने के बाद भी प्रभु के कारण पांडवों को विजयश्री मिली , वो भी प्रभु के बिना शस्त्र उठाए । पर पांडव एक जगह प्रभु को बिना लिए और प्रभु को बिना पूछे गए और फंस गए । यह प्रसंग था जुए के न्‍योते का जो उनके ताऊजी धृतराष्ट्र ने भिजवाया था । अगर वे प्रभु से पूछते तो प्रभु मना कर देते कि नहीं जाना है । अगर पांडव दुह...