प्रभु ने श्रीमद् भगवद् गीताजी में अपने
आश्रित का योगक्षेम वहन करने का प्रण लिया है । योगक्षेम
दो शब्दों से बना है योग एवं क्षेम । योग का यहाँ अर्थ है कि प्रभु कहते
हैं कि उनकी शरण ग्रहण करने वाले को जिस भी चीज की जब भी जरूरत होगी प्रभु उसे
उपलब्ध करवाएंगे । क्षेम का अर्थ है कि प्रभु कहते हैं
कि उसकी शरण ग्रहण करने वाले के पास जो भी है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे । यह दोनों कितने विलक्षण प्रभु के प्रण हैं कि जब भी जिस भी चीज की उसे जरूरत होगी वह प्रभु
पहुँचाएंगे और जो उसके पास है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे ।
एक संत एक तीर्थ में रहने वाले पंडितजी की एक सत्य कथा सुनाते थे । एक पंडितजी नियमित रूप से मंदिर में श्रीमद् भगवद् गीताजी का पाठ करते थे और जो भी चढ़ावा आ जाता था उससे अपना घर चलाते थे । एक बार ऐसा हुआ कि तीन दिन तक कोई चढ़ावा नहीं आया और घर का चूल्हा बंद हो गया । उनकी पत्नी जो उनके जैसे श्रद्धावाली नहीं थी वह बिगड़ गई कि आपके प्रभु ऐसा योगक्षेम वहन करते हैं । पंडितजी को भी पत्नी की बात सुनकर उस समय गुस्सा आ गया और वे रात को मंदिर गए और श्रीमद् भगवद् गीताजी में लिखे योगक्षेम शब्द को लाल स्याही से काट दिया । घर पहुँचे तो देखा कि घर का हर कमरा राशन से भरा हुआ है । गेहूँ, आटा, दाल, घी, तेल सब प्रचुर मात्रा में लगभग वर्ष भर चले इतना पड़ा था । उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा कि यह कहाँ से आया तो पत्नी ने कहा कि आप ही ने तो एक 8 से 10 वर्ष के बालक के मार्फत भिजवाया है । वह बालक पांच बैलगाड़ी में इतना सामान लेकर आया और बोला कि पंडितजी के पास एक यजमान आए हैं उन्होंने भेजा है । पंडितजी को समझते देर न लगी कि वह बालक प्रभु थे और प्रभु ने श्रीलीला कर दी । वे भागते हुए मंदिर वापस गए और श्रीमद् भगवद् गीताजी में लाल स्याही से काटे योगक्षेम शब्द को अपने आंसुओं से धो दिया ।