चौरासी लाख योनियों के बाद मनुष्य जन्म मिलता है । इन चौरासी लाख योनियों में हमें जलचर, नभचर, थलचर, वनस्पति सब बनना पड़ता है । एक वृक्ष के रूप में 200 से 300 वर्ष एक ही जगह हवा गर्मी तूफान सहते हुए खड़े रहना पड़ता है और 1 दिन की उम्र वाले कीट पतंग भी बनना पड़ता है । चार करोड़ पचास हजार वर्षों तक चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करने के बाद प्रभु कृपा करके फिर मनुष्य जन्म देते हैं । मनुष्य जन्म कितना दुर्लभ है इसका हम अंदाजा लगा सकते हैं क्योंकि इसी मनुष्य जन्म में ही भक्ति के जरिए प्रभु प्राप्ति संभव है जो अन्य किसी भी योनि में संभव नहीं है ।
एक संत एक उदाहरण देते थे कि एक बड़ा गोलाकार
कमरा है जिसमें बस बाहर निकलने का एक दरवाजा है । उस कमरे में रोशनी नहीं है और एक
अंधे आदमी को उसमें छोड़ दिया गया है । अंधा आदमी एक हाथ से गोलाकार दीवार को टटोलता
हुआ दरवाजा ढूँढ़ता है । जैसे ही दरवाजा आने वाला होता है उसे पीठ में जोरदार
खुजली आ जाती है और वह हाथ जो दीवार पर लगा था उसे वह पीठ में खुजली करने के लिए
ले जाता है । इस तरह वह दरवाजा चूक जाता है और आगे बढ़ जाता है । संत कहते हैं कि
यह दरवाजा मुक्ति का दरवाजा है जो मनुष्य जन्म में ही हमें मिलता है और हमें संसार
की खुजली आती है और हम भी उस अंधे आदमी की तरह मुक्ति द्वार चूक जाते हैं । फिर
जैसे उस अंधे आदमी को कमरे का पूरा चक्कर लगाना पड़ता है हमें भी चौरासी लाख योनियों
का पूरा चक्कर लगाना पड़ता है । हम प्रभु की तरह सनातन हैं और न जाने कितनी बार
हमने चौरासी लाख योनियों में भ्रमण किया है फिर मनुष्य जन्म पाया है पर उसका
मुक्ति के लिए उपयोग नहीं कर पाए । यह कितना बड़ा दुर्भाग्य है ।