हमारे घर के मंदिर में प्रभु का विग्रह होता है और हम उसकी सेवा करते हैं । सेवा करते-करते कभी हमें अपनी सेवा पर अभिमान आ जाए या लगे कि हम कितनी उत्कृष्ट सेवा कर रहे हैं तो प्रभु उस सेवा को स्वीकार नहीं करते । ऐसा नहीं हो इसलिए एक संत एक प्रसंग सुनाते थे । इस प्रसंग को बीच-बीच में पढ़ते रहना चाहिए । यह प्रसंग प्रभु श्री कृष्णजी और भगवती यशोदा माता के संदर्भ में है ।
श्री नंद बाबा के पास नौ लाख गौ-माताएं थी । इसमें से श्रेष्ठ नस्ल की एक लाख गौ-माताओं को उन्होंने प्रभु के लिए रखा था यानी उनका दूध अन्य कोई काम में नहीं लिया जाता था । एक लाख गौ-माताओं का दूध दस हजार गौ-माताओं को पिलाया जाता था । दस हजार गौ-माताओं का दूध एक हजार गौ-माताओं को पिलाया जाता था । एक हजार गौ-माताओं का दूध सौ गौ-माताओं को पिलाया जाता था । सौ गौ-माताओं का दूध दस गौ-माताओं को पिलाया जाता था । दस गौ-माताओं का दूध एक गौ-माता को पिलाया जाता था इन एक गौ-माता को पद्मगंधा गौ-माता कहा जाता था । इन पद्मगंधा गौ-माता का दूध प्रभु को पिलाने के लिए, दही, छाछ, मक्खन के लिए उपयोग में लिया जाता था । ऐसा केवल जन्माष्टमी के दिन नहीं होता बल्कि यह क्रिया पूरे वर्ष होती और भगवती यशोदा माता की उपस्थिति में और उनकी देखरेख में होती थी । भगवती यशोदा माता सेवकों के साथ अपने हाथ से प्रभु के सभी कार्य करती प्रभु की बढ़िया-से-बढ़िया सेवा उत्तम-से-उत्तम सामग्री से हो इसका भगवती यशोदा माता पूरा-पूरा ध्यान रखती थी । प्रभु की सेवा में ही अपना अधिकतर समय व्यतीत हो इसका भी वे पूरा ध्यान रखती थी । जिस घर में प्रभु की सेवा उत्तम तरीके से उत्तम सामग्री और प्रेम और भक्ति से समय देकर होती होगी वहाँ प्रभु सेवा स्वीकार करके उस घर और घरवालों को कृतार्थ करते हैं ।