भक्तों को प्रभु के श्रीकमलचरण बहुत प्रिय होते हैं । वे अपना स्थान और अधिकार प्रभु के श्रीकमलचरणों में मानते हैं । वे सदा प्रभु के श्रीकमलचरणों की छत्रछाया में रहना चाहते हैं । प्रभु के श्रीकमलचरणों में रहने से वे निश्चिंत और अभय रहते हैं । प्रभु के श्रीकमलचरणों का सानिध्य हर भक्ति करने वाले भक्तों ने चाहा है और पाया है ।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण स्वयं प्रभु श्री
हनुमानजी हैं ।
जब लंका पर प्रभु ने
विजय प्राप्त की और वनवास काल पूर्ण करके श्री अयोध्याजी लौटे तो प्रभु के साथ
प्रभु श्री हनुमानजी,
श्री सुग्रीवजी,
श्री जाम्बवन्तजी,
श्री अंगदजी,
श्री विभीषणजी और अन्य बहुत सारे प्रमुख वानर वीर श्री अयोध्याजी प्रभु के
राज्याभिषेक में शामिल होने के लिए आए । प्रभु का राज्याभिषेक हुआ । कुछ दिन तक सभी
प्रभु की सेवा में रुके फिर प्रभु ने सबको आशीर्वाद, भेंट और आदर-सम्मान देकर विदा
किया ।
पर जब प्रभु श्री
हनुमानजी की बारी आई तो उन्होंने कहा कि वे प्रभु की सेवा में श्री अयोध्याजी में
ही रहना चाहते हैं ।
प्रभु श्री रामजी और
भगवती सीता माता भी मन से यही चाहते थे तो उन्होंने प्रभु श्री हनुमानजी को श्री
अयोध्याजी में रोक लिया ।
राज्यसभा लगी हुई थी
तो प्रभु श्री रामजी ने कहा कि राज्यसभा में रोज प्रभु के साथ प्रभु श्री हनुमानजी
को भी आना पड़ेगा इसलिए उचित है कि वे कोई पद ग्रहण कर लें ।
यह सुनते ही प्रभु श्री
हनुमानजी ने कहा कि वे एक नहीं बल्कि दो पद लेना चाहेंगे और वे पद हैं प्रभु के
दोनों श्रीकमलचरण पद ।
प्रभु श्री हनुमानजी
ने राज्यसभा में अपना स्थान सदा के लिए राजसिंहासन में बैठे प्रभु के श्रीकमलचरणों
में पा लिया ।
सभी अयोध्यावासियों
ने प्रभु श्री हनुमानजी की भक्ति को नमन किया और कहा कि इनसे बड़ा प्रभु के श्रीकमलचरणों की महिमा जानने वाला कोई नहीं है ।