प्रभु को अपने भक्त बहुत प्रिय हैं । भक्तों द्वारा प्रभु के लिए किए हुए थोड़े-से कार्य को प्रभु
मेरु पर्वत समान बहुत बड़ा मानते हैं ।
प्रभु श्री हनुमानजी
द्वारा की गई सेवा को तो प्रभु
श्री रामजी ने इतना बड़ा माना कि उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि कुछ भी करके वे कभी
भी प्रभु श्री हनुमानजी के सेवा ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकते । यह कौन कह रहा है ? यह जगत नियंता प्रभु कह रहे हैं जिनकी भृकुटी के इशारे से ब्रह्मांडों का समूह
निर्माण और लय हो जाता है और जिनके संकल्प मात्र से सभी कार्य स्वतः ही सिद्ध हो जाते
हैं
।
श्रीराम दरबार का एक प्रसंग है । प्रभु राजसिंहासन पर
भगवती सीता माता के साथ बैठे थे और हरदम की तरह प्रभु के श्रीकमलचरणों की सेवा में
प्रभु श्री हनुमानजी बैठे थे ।
माता ने देखा कि
प्रभु को जब भी राज-काज की बातों से समय
मिलता वे अपने प्रिय प्रभु श्री हनुमानजी को देखते हैं पर जब प्रभु श्री हनुमानजी
अपनी नजरें उठाकर प्रभु से नजर मिलाने के लिए देखते तो प्रभु तुरंत दूसरी तरफ
देखने लगते ।
माता ने दिन भर में
ऐसा काफी बार होते देखा ।
रात्रि को शयनकक्ष
में माता ने प्रभु से पूछा कि जब मेरा पुत्र श्रीहनुमान आपको देखता है तो आप नजर
दूसरी तरफ क्यों कर लेते हैं ? तो प्रभु श्री रामजी
ने बड़ा मार्मिक उत्तर दिया ।
प्रभु श्री रामजी ने
कहा कि वे प्रभु श्री हनुमानजी के चढ़ाए सेवा ऋण से कभी भी उऋण नहीं हो सकते । तो एक ऋणी जिस पर ऋण चढ़ा है वह
कैसे आँखें मिला कर अपने ऋण चढ़ाने वाले व्यक्ति को देख सकता है । प्रभु को भक्तों का सेवा
ऋण अपने ऊपर चढ़ना बहुत प्रिय लगता है ।
सच्ची बात तो यह है
कि प्रभु कभी भी प्रभु श्री हनुमानजी जैसे भक्तों के ऋण से उऋण होना ही नहीं चाहते ।