प्रभु की भक्ति हमारा कितना उत्थान करवाती है और
प्रभु का जन बन जाने से जगत में कितना मान मिलता है इसकी हम कल्पना भी नहीं कर
सकते । प्रभु स्वयं अपने भक्त का मान बढ़ाने के लिए कई चमत्कार करते हैं जिससे
उनके प्रिय भक्त की कीर्ति चारों दिशाओं में फैल जाए । इससे प्रभु को जो सुख
मिलता है उतना सुख प्रभु को अन्य किसी चीज से नहीं मिलता ।
एक राज्य में राजा के यहाँ एक मंत्री कार्य करता
था जो कि भक्त था । वह रोज राज्यसभा में नीचे अपने स्थान पर खड़ा होकर ऊपर राजसिंहासन पर बैठे राजा के सामने हाथ जोड़कर खड़ा रहता था । एक दिन उसे यह भाव आया
कि हाथ जोड़ना ही है तो प्रभु के जोड़ने चाहिए और उसने राजा को अपना इस्तीफा दे
दिया । भक्त तो वह पहले से था ही अब वह जंगल में जाकर कुटिया में रहकर प्रभु की
भक्ति करने लगा । प्रभु दिखाना चाहते थे कि उनसे जुड़ने पर क्या होता है । वह
मंत्री एक संत के रूप में बहुत सिद्धियां प्राप्त कर ख्याति को प्राप्त हुआ । एक
बार उस राजा के राज्य में अकाल पड़ा । दो-तीन वर्षों तक वर्षा ही नहीं हुई । किसी
ने कहा कि किसी बड़े संत से अनुष्ठान कराना चाहिए । उस समय मंत्री के रूप में जो
प्रभु भक्त संत बना था और उसकी ख्याति चारों तरफ प्रभु ने फैला रखी थी । राजा उसी की शरण में गया । संत के रूप
में मंत्री ने राजा को पहचान लिया पर राजा नहीं पहचान पाया क्योंकि मंत्री की काया
ही संतमय हो गई थी । संत ने अनुष्ठान किया और राजा पूरे सात दिनों तक उनके चरणों में बैठा रहा ।
अनुष्ठान सफल हुआ, वर्षा हुई और राजा ने उन संत के चरणों में साष्टांग
दंडवत प्रणाम किया । प्रभु से जुड़ने से पहले जो मंत्री राज्यसभा में राजा को
नित्य हाथ जोड़े नीचे खड़ा रहता था अब वही राजा उन्हें साष्टांग दंडवत प्रणाम
करके उन्हें सिंहासन पर बैठा
खुद उनके चरणों में बैठ
गया । सिद्धांत यह है कि जो जगत में प्रभु के बन जाते हैं उनके आगे संसार के सभी राजा और महाराजा झुकते हैं ।