सनातन धर्म में प्रभु के अगणित रूप और अगणित नाम
हैं । यह सनातन धर्म का अद्वितीय गौरव है कि प्रभु कितने नाम और रूपों से इस धर्म
में प्रकट हुए हैं । श्री रामचरितमानसजी में देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने प्रभु
श्री रामजी से एक वरदान मांगा । उन्होंने मांगा कि प्रभु के सभी नामों में श्रीराम
नाम का माहात्म्य सबसे विलक्षण हो । प्रभु ने ऐसा ही वरदान दिया और भारतवर्ष में
प्राचीन काल से प्रभु श्री रामजी का नाम हर व्यवहार में प्रयोग में आने लग गया ।
कोई भी व्यक्ति दुःख में “हे राम” का उच्चारण करता मिलेगा । कोई पीड़ा में हो तो “अरे
राम बचाओ” का उच्चारण करता मिलेगा । कोई लज्जा का कार्य
करेगा तो कहने वाले कहेंगे कि “हाय राम” शर्म नहीं आई ऐसा करते हुए । कोई अशुभ घटना को देखकर हम “अरे राम-राम” ऐसा हो गया यह कहते हैं । किसी का
अभिवादन करना है तो हम “राम-राम” कहते
हैं । दो बार राम कहने का सीधा अर्थ है कि एक राम जो मेरे अंदर हैं और एक राम जो
आपके अंदर हैं उन दोनों को प्रणाम करना और उन दोनों का अभिवादन करना । किसी को शपथ
खानी हो तो आज भी “राम दुहाई” यानी
प्रभु श्री रामजी के नाम की शपथ दिलाई जाती है । हमसे कोई प्रश्न पूछता है तो अज्ञानतावश हमारे मुँह से अनायास निकल जाता है कि “राम जाने” ।
अनिश्चितता में हम कहते हैं कि हम “राम भरोसे” हैं यानी जब संसार का भरोसा खत्म हो जाता है तो भी श्रीराम का भरोसा जीव
को रहता है । कोई दवाई अचूक काम करें तो हम कहते हैं कि इसने “रामबाण” की तरह काम किया । मृत्यु के समय जब शव को
श्मशान में ले जाया जाता है तो रास्ते भर “राम नाम सत्य है” कहा जाता है । शासन को सुशासन करने के लिए आज भी “रामराज्य” की दुहाई दी जाती है । “निर्बल के बल राम” एक बहुचर्चित मुहावरा है जिसका अर्थ है कि जिसको अपने बल का गुमान नहीं
है उसके बल श्रीराम होते हैं । श्रीराम नाम प्रभु श्री रामजी की तरह इतना सरल है
कि हर जगह उसका इस्तेमाल होता है ।