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14. श्रीराम नाम की महिमा

सनातन धर्म में प्रभु के अगणित रूप और अगणित नाम हैं । यह सनातन धर्म का अद्वितीय गौरव है कि प्रभु कितने नाम और रूपों से इस धर्म में प्रकट हुए हैं । श्री रामचरितमानसजी में देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने प्रभु श्री रामजी से एक वरदान मांगा । उन्होंने मांगा कि प्रभु के सभी नामों में श्रीराम नाम का माहात्म्य सबसे विलक्षण हो । प्रभु ने ऐसा ही वरदान दिया और भारतवर्ष में प्राचीन काल से प्रभु श्री रामजी का नाम हर व्यवहार में प्रयोग में आने लग गया ।

कोई भी व्यक्ति दुःख में हे राम का उच्चारण करता मिलेगा । कोई पीड़ा में हो तो अरे राम बचाओ का उच्चारण करता मिलेगा । कोई लज्जा का कार्य करेगा तो कहने वाले कहेंगे कि हाय राम शर्म नहीं आई ऐसा करते हुए । कोई अशुभ घटना को देखकर हम अरे राम-राम ऐसा हो गया यह कहते हैं । किसी का अभिवादन करना है तो हम राम-राम कहते हैं । दो बार राम कहने का सीधा अर्थ है कि एक राम जो मेरे अंदर हैं और एक राम जो आपके अंदर हैं उन दोनों को प्रणाम करना और उन दोनों का अभिवादन करना । किसी को शपथ खानी हो तो आज भी राम दुहाई यानी प्रभु श्री रामजी के नाम की शपथ दिलाई जाती है । हमसे कोई प्रश्न पूछता है तो अज्ञानतावश हमारे मुँह से अनायास निकल जाता है कि राम जाने । अनिश्चितता में हम कहते हैं कि हम राम भरोसे हैं यानी जब संसार का भरोसा खत्म हो जाता है तो भी श्रीराम का भरोसा जीव को रहता है । कोई दवाई अचूक काम करें तो हम कहते हैं कि इसने रामबाण की तरह काम किया । मृत्यु के समय जब शव को श्मशान में ले जाया जाता है तो रास्ते भर राम नाम सत्य है कहा जाता है । शासन को सुशासन करने के लिए आज भी रामराज्य की दुहाई दी जाती है । निर्बल के बल राम एक बहुचर्चित मुहावरा है जिसका अर्थ है कि जिसको अपने बल का गुमान नहीं है उसके बल श्रीराम होते हैं । श्रीराम नाम प्रभु श्री रामजी की तरह इतना सरल है कि हर जगह उसका इस्तेमाल होता है ।

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01. प्रभु के दो बड़े प्रण

प्रभु ने श्रीमद् भगवद् गीताजी में अपने आश्रित का योगक्षेम वहन करने का प्रण लिया है । योगक्षेम दो शब्दों से बना है योग एवं क्षेम । योग का यहाँ अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि उनकी शरण ग्रहण करने वाले को जिस भी चीज की जब भी जरूरत होगी प्रभु उसे उपलब्ध करवाएंगे । क्षेम का अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि उसकी शरण ग्रहण करने वाले के पास जो भी है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे । यह दोनों कितने विलक्षण प्रभु के प्रण हैं कि जब भी जिस भी चीज की उसे जरूरत होगी वह प्रभु पहुँचाएंगे और जो उसके पास है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे । एक संत एक तीर्थ में रहने वाले पंडितजी की एक सत्य कथा सुनाते थे । एक पंडितजी नियमित रूप से मंदिर में श्रीमद् भगवद् गीताजी का पाठ करते थे और जो भी चढ़ावा आ जाता था उससे अपना घर चलाते थे । एक बार ऐसा हुआ कि तीन दिन तक कोई चढ़ावा नहीं आया और घर का चूल्हा बंद हो गया । उनकी पत्नी जो उनके जैसे श्रद्धावाली नहीं थी वह बिगड़ गई कि आपके प्रभु ऐसा योगक्षेम वहन करते हैं । पंडितजी को भी पत्नी की बात सुनकर उस समय गुस्सा आ गया और वे रात को मंदिर गए और श्रीमद् भगवद् गीताजी में लिखे योगक्षेम शब्द को ...

04. प्रभु की सेवा

हमारे घर के मंदिर में प्रभु का विग्रह होता है और हम उसकी सेवा करते हैं । सेवा करते - करते कभी हमें अपनी सेवा पर अभिमान आ जाए या लगे कि हम कितनी उत्कृष्ट सेवा कर रहे हैं तो प्रभु उस सेवा को स्वीकार नहीं करते । ऐसा नहीं हो इसलिए एक संत एक प्रसंग सुनाते थे । इस प्रसंग को बीच-बीच में पढ़ते रहना चाहिए । यह प्रसंग प्रभु श्री कृष्णजी और भगवती यशोदा माता के संदर्भ में है । श्री नंद बाबा के पास नौ लाख गौ - माताएं थी । इसमें से श्रेष्ठ नस्ल की एक लाख गौ - माताओं को उन्होंने प्रभु के लिए रखा था यानी   उनका दूध अन्य कोई काम   में नहीं लिया जाता था । एक लाख गौ - माताओं का दूध दस हजार गौ - माताओं को पिलाया जाता था । दस हजार गौ - माताओं का दूध एक हजार गौ - माताओं को पिलाया जाता था । एक हजार गौ - माताओं का दूध सौ गौ - माताओं को पिलाया जाता था । सौ गौ - माताओं का दूध दस गौ - माताओं को पिलाया जाता था । दस गौ - माताओं का दूध एक गौ - माता को पिलाया जाता था इन एक गौ - माता को पद्मगंधा गौ - माता कहा जाता था । इन पद्मगंधा गौ - माता का दूध प्रभु को पिलाने के लिए, दही, छाछ, मक्खन के लिए उपयोग में लि...

20. हर जगह प्रभु को साथ रखें

एक आदत बना लें कि जब भी घर से निकलें तो मन में कहें कि प्रभु साथ चलें और मार्गदर्शन करें ताकि मैं कोई गलती न कर बैठूं । घर में रहें तो प्रभु की  मनोमय (मन में बनाई गई प्रभु की प्रतिमा)  प्रतिमा अपने कार्यस्थल में लगा कर रखें और बीच-बीच में कार्य करते-करते प्रभु को देखें और बात करें कि मैं सही कार्य कर रहा हूँ की नहीं । पांडवों ने प्रभु श्री कृष्णजी को सदैव अपने साथ रखा और प्रभु ने पग-पग पर उनकी रक्षा की ।   सौ कौरव मारे गए पर पांचो पांडव प्रभु कृपा से बच गए । भगवती कुंतीजी , जो पांडवों की माता थी , उन्होंने प्रभु का एहसान मानते हुए सारे प्रसंग गिनाए जब प्रभु ने साक्षात रूप से पांडवों के प्राणों की रक्षा की । इतना बड़ा युद्ध , अपने से विशाल सेना और अनेक महारथियों के होने के बाद भी प्रभु के कारण पांडवों को विजयश्री मिली , वो भी प्रभु के बिना शस्त्र उठाए । पर पांडव एक जगह प्रभु को बिना लिए और प्रभु को बिना पूछे गए और फंस गए । यह प्रसंग था जुए के न्‍योते का जो उनके ताऊजी धृतराष्ट्र ने भिजवाया था । अगर वे प्रभु से पूछते तो प्रभु मना कर देते कि नहीं जाना है । अगर पांडव दुह...