प्रभु को किए प्रणाम का कितना बड़ा महत्व है यह
हमें समझना चाहिए । प्रभु को प्रणाम करने से प्रभु का मंगल आशीर्वाद हमें मिलता है
जिससे हमारा कल्याण-ही-कल्याण होता है । नित्य
मन से किया प्रणाम प्रभु को हमारे वश में कर देता है । प्रणाम करने से प्रभु का
रक्षा कवच हमें प्राप्त हो जाता है ।
श्री महाभारतजी का एक जीवंत उदाहरण है । सांसारिक व्यक्ति को किया प्रणाम भी कितना फलता है तो परमपिता प्रभु को किया प्रणाम तो हमारा परम मंगल करता ही है । श्री महाभारतजी के युद्ध में कौरव और पांडवों की सेना आमने-सामने थी और कुछ ही समय बाद युद्ध प्रारंभ होने वाला था । एकाएक सबने देखा कि श्री युधिष्ठिरजी अपने शस्त्र रखकर रथ से उतरे और पैदल कौरव पक्ष में गए । उन्होंने श्री भिष्म पितामह और गुरु श्री द्रोणाचार्यजी को झुककर प्रणाम किया और आशीर्वाद मांगा । दोनों को आशीर्वाद रूप में कहना पड़ा कि विजयी हो । अब जरा सोचें अगर अपनी दुर्बुद्धि, अहंकार और अकड़ छोड़कर दुर्योधन भी यह देखकर पांडव पक्ष में चला आता और प्रभु श्री कृष्णजी को प्रणाम करता तो प्रभु को भी आशीर्वाद देना पड़ता और प्रभु भी कहते विजयी भवः । प्रभु के वचन हरदम सत्य होते हैं और सत्य होकर ही रहते हैं । युद्ध का निर्णय जो हुआ वह प्रभु के उस आशीर्वाद से उसी समय बदल जाता पर दुर्योधन की बुद्धि ने या उसके किसी सलाहकार ने उसे ऐसी सलाह उसे नहीं दी । एक कहावत है कि विनाश काल में बुद्धि हमारा साथ नहीं देती जो दुर्योधन के संदर्भ में सत्य साबित हुई । अगर वह प्रभु को युद्ध से पहले एक प्रणाम कर लेता तो युद्ध का निर्णय ही पलट जाता । प्रभु को किए प्रणाम का इतना बड़ा महत्व है ।