मृत्यु के बाद हमारा परिवार, जमीन जायदाद, पूरा जीवन लगाकर कमाए धन में से कुछ भी हमारे काम आने वाला नहीं है । यह सब कुछ यहीं संसार में रह जाने वाला है और हमें निराश मन से सब कुछ छोड़कर आगे की यात्रा में जाना पड़ेगा । मृत्यु के बाद जो हमारे साथ जाएगा वह हमारी उस जीवन में की हुई प्रभु की भक्ति ही है । प्रभु ने श्रीमद् भगवद् गीताजी में कहा है कि कोई जीव अपनी भक्ति की पूंजी को कभी खोता नहीं है और मृत्यु के बाद भी वह भक्ति की पूंजी उसके साथ रहती है और उसके काम आती है ।
एक संत कुटिया में रहते थे और प्रभु की भक्ति
करते थे । उनके भजनानंदी होने की ख्याति सब तरफ फैली हुई थी । पास
का एक राज्य बड़ा संपन्न था और राजा के पास खूब संपत्ति थी । उस राजा को अभिमान भी
था कि इतने युद्ध विजय करके अपने राज्य की संपत्ति और सीमा
को उसने बहुत बढ़ाया है । एक बार पूरे लवाजमे के साथ भेंट सामग्री
में बेशकीमती रत्न लेकर वह उन संत से मिलने गया । संत उस समय अपनी फटी धोती को
रफू कर रहे थे । राजा हाथी पर बैठकर आया और उसे देखते ही संत भाप गए कि इसका
अभिमान ही इसे यहाँ लाया है । राजा ने संत को प्रणाम किया और भेंट सामग्री सामने
रख दी । संत ने कहा कि यह सब मेरे किसी काम की नहीं है । राजा ने कहा कि मैं आपकी
कुछ सेवा करना चाहता हूँ कृपया मुझे कुछ सेवा बताएं । संत बहुत पहुँचे हुए थे और
उन्होंने सोचा कि इस अभिमानी राजा को पारमार्थिक ज्ञान देना चाहिए जिससे इसका मंगल
हो और इस तरह मुझे इसका हित करना चाहिए । संत ने धोती रफू करने वाली सुई निकाली और
राजा को देते हुए कहा कि अगले जन्म मुझे यह मिल जाए ऐसी व्यवस्था कर दो, यही मेरी सेवा है । राजा
हतप्रभ और स्तब्ध रह गया और समझ गया कि संसार में इकट्ठा किया गया धन, जायदाद और संपत्ति तो
क्या एक सुई भी अगले जन्म के लिए हम नहीं ले जा सकते और हमारे काम आने वाली नहीं
है ।