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18. अनन्यता प्रभु को सबसे प्रिय

शास्त्रों में एक बात हर जगह प्रतिपादित है कि प्रभु के लिए अनन्यता होनी चाहिए । अनन्यता का सीधा अर्थ है कि अन्य नहीं, केवल प्रभु । अन्य को हम साथ में रखते हैं तो प्रभु हस्तक्षेप नहीं करते ।

भगवती द्रौपदीजी की लाज प्रभु ने बचाई । भगवती द्रौपदीजी ने प्रभु से बाद में एक बार प्रश्न किया कि जब लाज बचानी थी तो पहले क्यों नहीं आए, अंतिम अवस्था में ही क्यों आए ? प्रभु ने बड़ा मार्मिक उत्तर दिया । प्रभु बोले कि पहले तुमने मुझे पुकारा और साथ में अपने पतियों को भी पुकारा । पति कुछ न कर पाए तो मेरे साथ में श्री भीष्‍म पितामह, गुरु श्री द्रोणाचार्य और श्री कृपाचार्य और ससुर धृतराष्ट्र को भी पुकारा । फिर मेरे साथ अपने बल पर भरोसा किया, दोनों हाथों से साड़ी पकड़ कर रखी और मुँह से साड़ी दबा कर रखी । फिर एक हाथ से साड़ी छोड़ी, कुछ समय के बाद दूसरे हाथ से साड़ी छोड़ी । पर जब अंतिम जगह मुँह से पकड़ी साड़ी भी छोड़ी और मुझे अनन्य होकर पुकारा तो मैं तुरंत आ गया और वस्त्र अवतार लेकर अपने भक्‍त से लिपट गया । प्रभु ने कहा कि जब तुमने सबसे पहले पुकारा था तो मैं श्रीद्वारकापुरी में खाना खाने बैठा था । तुम्हारी पुकार सुनते ही मैं खाना त्याग कर तैयार बैठा रहा कि कब अनन्य होकर केवल मुझ पर भरोसा करके मुझे पुकारे । भगवती रुक्मिणीजी ने भी मुझसे कहा कि प्रभु आप लाज बचाने जाते क्यों नहीं तो मैंने यही उत्तर दिया कि अभी उसे अपने कुटुंबबल,  शारीरिक बल पर भरोसा है, अनन्‍यता से केवल मुझ पर भरोसा नहीं है । प्रभु को अनन्‍यता बड़ी प्रिय है । एक सांसारिक पिता भी चाहेगा कि उसका छोटा बेटा केवल उस पर भरोसा करे । एक पति भी चाहता है कि उसकी पत्नी केवल उसका आश्रय लेकर रखे । ऐसे ही प्रभु भी चाहते हैं कि उनका भक्त केवल अनन्य भाव से उनका आश्रय जीवन में ले कर रहे, अन्य सांसारिक आश्रयों का त्याग करे ।

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01. प्रभु के दो बड़े प्रण

प्रभु ने श्रीमद् भगवद् गीताजी में अपने आश्रित का योगक्षेम वहन करने का प्रण लिया है । योगक्षेम दो शब्दों से बना है योग एवं क्षेम । योग का यहाँ अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि उनकी शरण ग्रहण करने वाले को जिस भी चीज की जब भी जरूरत होगी प्रभु उसे उपलब्ध करवाएंगे । क्षेम का अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि उसकी शरण ग्रहण करने वाले के पास जो भी है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे । यह दोनों कितने विलक्षण प्रभु के प्रण हैं कि जब भी जिस भी चीज की उसे जरूरत होगी वह प्रभु पहुँचाएंगे और जो उसके पास है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे । एक संत एक तीर्थ में रहने वाले पंडितजी की एक सत्य कथा सुनाते थे । एक पंडितजी नियमित रूप से मंदिर में श्रीमद् भगवद् गीताजी का पाठ करते थे और जो भी चढ़ावा आ जाता था उससे अपना घर चलाते थे । एक बार ऐसा हुआ कि तीन दिन तक कोई चढ़ावा नहीं आया और घर का चूल्हा बंद हो गया । उनकी पत्नी जो उनके जैसे श्रद्धावाली नहीं थी वह बिगड़ गई कि आपके प्रभु ऐसा योगक्षेम वहन करते हैं । पंडितजी को भी पत्नी की बात सुनकर उस समय गुस्सा आ गया और वे रात को मंदिर गए और श्रीमद् भगवद् गीताजी में लिखे योगक्षेम शब्द को ...

04. प्रभु की सेवा

हमारे घर के मंदिर में प्रभु का विग्रह होता है और हम उसकी सेवा करते हैं । सेवा करते - करते कभी हमें अपनी सेवा पर अभिमान आ जाए या लगे कि हम कितनी उत्कृष्ट सेवा कर रहे हैं तो प्रभु उस सेवा को स्वीकार नहीं करते । ऐसा नहीं हो इसलिए एक संत एक प्रसंग सुनाते थे । इस प्रसंग को बीच-बीच में पढ़ते रहना चाहिए । यह प्रसंग प्रभु श्री कृष्णजी और भगवती यशोदा माता के संदर्भ में है । श्री नंद बाबा के पास नौ लाख गौ - माताएं थी । इसमें से श्रेष्ठ नस्ल की एक लाख गौ - माताओं को उन्होंने प्रभु के लिए रखा था यानी   उनका दूध अन्य कोई काम   में नहीं लिया जाता था । एक लाख गौ - माताओं का दूध दस हजार गौ - माताओं को पिलाया जाता था । दस हजार गौ - माताओं का दूध एक हजार गौ - माताओं को पिलाया जाता था । एक हजार गौ - माताओं का दूध सौ गौ - माताओं को पिलाया जाता था । सौ गौ - माताओं का दूध दस गौ - माताओं को पिलाया जाता था । दस गौ - माताओं का दूध एक गौ - माता को पिलाया जाता था इन एक गौ - माता को पद्मगंधा गौ - माता कहा जाता था । इन पद्मगंधा गौ - माता का दूध प्रभु को पिलाने के लिए, दही, छाछ, मक्खन के लिए उपयोग में लि...

20. हर जगह प्रभु को साथ रखें

एक आदत बना लें कि जब भी घर से निकलें तो मन में कहें कि प्रभु साथ चलें और मार्गदर्शन करें ताकि मैं कोई गलती न कर बैठूं । घर में रहें तो प्रभु की  मनोमय (मन में बनाई गई प्रभु की प्रतिमा)  प्रतिमा अपने कार्यस्थल में लगा कर रखें और बीच-बीच में कार्य करते-करते प्रभु को देखें और बात करें कि मैं सही कार्य कर रहा हूँ की नहीं । पांडवों ने प्रभु श्री कृष्णजी को सदैव अपने साथ रखा और प्रभु ने पग-पग पर उनकी रक्षा की ।   सौ कौरव मारे गए पर पांचो पांडव प्रभु कृपा से बच गए । भगवती कुंतीजी , जो पांडवों की माता थी , उन्होंने प्रभु का एहसान मानते हुए सारे प्रसंग गिनाए जब प्रभु ने साक्षात रूप से पांडवों के प्राणों की रक्षा की । इतना बड़ा युद्ध , अपने से विशाल सेना और अनेक महारथियों के होने के बाद भी प्रभु के कारण पांडवों को विजयश्री मिली , वो भी प्रभु के बिना शस्त्र उठाए । पर पांडव एक जगह प्रभु को बिना लिए और प्रभु को बिना पूछे गए और फंस गए । यह प्रसंग था जुए के न्‍योते का जो उनके ताऊजी धृतराष्ट्र ने भिजवाया था । अगर वे प्रभु से पूछते तो प्रभु मना कर देते कि नहीं जाना है । अगर पांडव दुह...