वैसे तो भक्ति जगत में कई बड़े-बड़े
भक्त हर युग में हुए हैं पर चारों युगों में प्रभु श्री
हनुमानजी जैसा कोई भक्त न कभी हुआ है और न आगे होगा । प्रभु श्री हनुमानजी की श्रीराम
भक्ति इतनी श्रेष्ठ है कि प्रभु श्री रामजी ने अपने श्रीमुख से वह अमर वचन कहा कि
वे कुछ भी करके, कैसे भी प्रभु श्री हनुमानजी के ऋण से
उऋण नहीं हो सकते ।
प्रभु श्री हनुमानजी की भक्ति की एक बड़ी
मार्मिक कथा आपको सुनाते हैं । लंका युद्ध हो चुका था और प्रभु का श्री अयोध्याजी
में आगमन और राजतिलक भी हो चुका था । राजतिलक वाली रात चारों भाई और बहुएं और
प्रभु श्री हनुमानजी प्रभु के कक्ष में उपस्थित थे । रात्रि ज्यादा होती देख श्री
शत्रुघ्नजी ने सबसे कहा कि भैया और भाभी को विश्राम की जरूरत है, इसलिए सबको चलना चाहिए और
उन्हें एकांत देना चाहिए । सब प्रभु और माता को प्रणाम करके चलने लगे पर प्रभु श्री
हनुमानजी प्रभु के श्रीकमलचरणों में ही बैठे रहे । तब श्री शत्रुघ्नजी ने उनसे कहा
कि आपको भी चलना चाहिए और प्रभु को एकांत देना चाहिए । प्रभु श्री हनुमानजी ने
भगवती सीता माता की तरफ इशारा करके कहा कि माता भी तो बैठी हैं । तो श्री
शत्रुघ्नजी ने माता के शीश पर सिंदूर दिखाते हुए कहा कि इसके कारण उन्हें प्रभु के
साथ एकांत में रहने की अनुमति है । प्रभु श्री हनुमानजी दुःखी मन से कक्ष से बाहर
आ गए । फिर क्या था रात में ही प्रभु श्री हनुमानजी ने श्री अयोध्याजी के नगर की
दुकानों को तोड़कर जहाँ भी सिंदूर मिला अपने पूरे बदन पर लगा लिया । सुबह दुकानदार
प्रभु की राज्यसभा में शिकायत लेकर आए कि रात में प्रभु श्री हनुमानजी ने दुकानों
में तोड़फोड़ की । प्रभु श्री हनुमानजी जब बुलाने पर आए तो सिंदूर से नहाए हुए थे ।
प्रभु समझ गए पर सबको उनकी भक्ति दिखाने के लिए इसका कारण पूछा । प्रभु श्री
हनुमानजी ने बड़ा मार्मिक जवाब दिया कि एक चुटकी सिंदूर से अगर माता को प्रभु के
साथ एकांत में रहने की अनुमति है तो मैं तो सिंदूर से नहाया हुआ हूँ अब मुझे प्रभु
के साथ हर समय रहने की इस तरह अनुमति मिल गई है और अब मुझे प्रभु से अलग कोई नहीं
कर सकता ।