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21. प्रभु युक्ति से भक्तों को बचाते हैं

भक्त कितना भी बिगाड़ कर ले पर अगर अनन्यता से प्रभु पर भरोसा करता है तो प्रभु अंतिम अवस्था में भी युक्ति निकाल अपने भक्तों को बचाते हैं और उसका बाल भी बाँका नहीं होने देते ।

प्रसंग श्री महाभारतजी के युद्ध का है । प्रभु श्री कृष्णजी के संरक्षण में पांडवों ने कौरव सेना और कौरव महारथियों का सफाया कर दिया । केवल दुर्योधन घायल अवस्था में बचा था और वह जाकर एक तालाब में छिप गया । प्रभु यह जानते थे और वे पांचों पांडवों को लेकर तालाब पर गए । पांडवों ने दुर्योधन को युद्ध के लिए ललकारा । दुर्योधन तालाब से बाहर आया तो श्री युधिष्ठिरजी ने उससे कहा कि हम पांचों में से किसी एक को गदा युद्ध करने के लिए चुन लो । प्रभु तुरंत भाप गए कि श्री युधिष्ठिरजी ने आवेश में गलत कह दिया । दुर्योधन प्रभु श्री बलरामजी से गदा युद्ध सीखा हुआ है और बहुत बलवान है और श्री युधिष्ठिरजी, श्री अर्जुनजी, श्री नकुलजी और श्री सहदेवजी को आसानी से गदा युद्ध में परास्त करके मार सकता है । पांडवों का एक प्रण था कि एक पांडव भी अगर मारा जाता है तो युद्ध बंद कर बाकी बचे हुए चारों पांडव अग्नि प्रवेश करेंगे । प्रभु ने देखा कि अगर दुर्योधन ने श्री भीमसेनजी को छोड़ अन्‍य किसी अन्‍य पांडव का चयन कर लिया तो पांडव जीते जिताए युद्ध को हार जाएंगे । प्रभु ने तुरंत युक्ति की । प्रभु को पता था कि दुर्योधन अपने बल का अभिमानी है इसलिए उसके अभिमान को जागृत करने के लिए प्रभु ने कहा कि दुर्योधन महायोद्धा है और किसी कमजोर योद्धा से युद्ध कर अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर कदापि नहीं लगाएगा । दुर्योधन का अभिमान जाग गया और उसने कहा कि मैं कमजोर से युद्ध नहीं करता मैं तो केवल श्री भीमसेनजी से युद्ध करूंगा । प्रभु यही चाहते थे । श्री भीमसेनजी ने युद्ध में दुर्योधन को मारा और पांडव आपत्ति में आने पर भी प्रभु की युक्ति के कारण विजयी हुए । सारांश यह है कि अगर हम प्रभु की शरण में हैं और कुछ गलत भी कर लेते हैं तो प्रभु युक्ति निकाल कर हमें बचा लेते हैं ।

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01. प्रभु के दो बड़े प्रण

प्रभु ने श्रीमद् भगवद् गीताजी में अपने आश्रित का योगक्षेम वहन करने का प्रण लिया है । योगक्षेम दो शब्दों से बना है योग एवं क्षेम । योग का यहाँ अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि उनकी शरण ग्रहण करने वाले को जिस भी चीज की जब भी जरूरत होगी प्रभु उसे उपलब्ध करवाएंगे । क्षेम का अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि उसकी शरण ग्रहण करने वाले के पास जो भी है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे । यह दोनों कितने विलक्षण प्रभु के प्रण हैं कि जब भी जिस भी चीज की उसे जरूरत होगी वह प्रभु पहुँचाएंगे और जो उसके पास है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे । एक संत एक तीर्थ में रहने वाले पंडितजी की एक सत्य कथा सुनाते थे । एक पंडितजी नियमित रूप से मंदिर में श्रीमद् भगवद् गीताजी का पाठ करते थे और जो भी चढ़ावा आ जाता था उससे अपना घर चलाते थे । एक बार ऐसा हुआ कि तीन दिन तक कोई चढ़ावा नहीं आया और घर का चूल्हा बंद हो गया । उनकी पत्नी जो उनके जैसे श्रद्धावाली नहीं थी वह बिगड़ गई कि आपके प्रभु ऐसा योगक्षेम वहन करते हैं । पंडितजी को भी पत्नी की बात सुनकर उस समय गुस्सा आ गया और वे रात को मंदिर गए और श्रीमद् भगवद् गीताजी में लिखे योगक्षेम शब्द को ...

04. प्रभु की सेवा

हमारे घर के मंदिर में प्रभु का विग्रह होता है और हम उसकी सेवा करते हैं । सेवा करते - करते कभी हमें अपनी सेवा पर अभिमान आ जाए या लगे कि हम कितनी उत्कृष्ट सेवा कर रहे हैं तो प्रभु उस सेवा को स्वीकार नहीं करते । ऐसा नहीं हो इसलिए एक संत एक प्रसंग सुनाते थे । इस प्रसंग को बीच-बीच में पढ़ते रहना चाहिए । यह प्रसंग प्रभु श्री कृष्णजी और भगवती यशोदा माता के संदर्भ में है । श्री नंद बाबा के पास नौ लाख गौ - माताएं थी । इसमें से श्रेष्ठ नस्ल की एक लाख गौ - माताओं को उन्होंने प्रभु के लिए रखा था यानी   उनका दूध अन्य कोई काम   में नहीं लिया जाता था । एक लाख गौ - माताओं का दूध दस हजार गौ - माताओं को पिलाया जाता था । दस हजार गौ - माताओं का दूध एक हजार गौ - माताओं को पिलाया जाता था । एक हजार गौ - माताओं का दूध सौ गौ - माताओं को पिलाया जाता था । सौ गौ - माताओं का दूध दस गौ - माताओं को पिलाया जाता था । दस गौ - माताओं का दूध एक गौ - माता को पिलाया जाता था इन एक गौ - माता को पद्मगंधा गौ - माता कहा जाता था । इन पद्मगंधा गौ - माता का दूध प्रभु को पिलाने के लिए, दही, छाछ, मक्खन के लिए उपयोग में लि...

20. हर जगह प्रभु को साथ रखें

एक आदत बना लें कि जब भी घर से निकलें तो मन में कहें कि प्रभु साथ चलें और मार्गदर्शन करें ताकि मैं कोई गलती न कर बैठूं । घर में रहें तो प्रभु की  मनोमय (मन में बनाई गई प्रभु की प्रतिमा)  प्रतिमा अपने कार्यस्थल में लगा कर रखें और बीच-बीच में कार्य करते-करते प्रभु को देखें और बात करें कि मैं सही कार्य कर रहा हूँ की नहीं । पांडवों ने प्रभु श्री कृष्णजी को सदैव अपने साथ रखा और प्रभु ने पग-पग पर उनकी रक्षा की ।   सौ कौरव मारे गए पर पांचो पांडव प्रभु कृपा से बच गए । भगवती कुंतीजी , जो पांडवों की माता थी , उन्होंने प्रभु का एहसान मानते हुए सारे प्रसंग गिनाए जब प्रभु ने साक्षात रूप से पांडवों के प्राणों की रक्षा की । इतना बड़ा युद्ध , अपने से विशाल सेना और अनेक महारथियों के होने के बाद भी प्रभु के कारण पांडवों को विजयश्री मिली , वो भी प्रभु के बिना शस्त्र उठाए । पर पांडव एक जगह प्रभु को बिना लिए और प्रभु को बिना पूछे गए और फंस गए । यह प्रसंग था जुए के न्‍योते का जो उनके ताऊजी धृतराष्ट्र ने भिजवाया था । अगर वे प्रभु से पूछते तो प्रभु मना कर देते कि नहीं जाना है । अगर पांडव दुह...