भक्त कितना भी बिगाड़ कर ले पर अगर अनन्यता से
प्रभु पर भरोसा करता है तो प्रभु अंतिम अवस्था में भी युक्ति निकाल अपने भक्तों को
बचाते हैं और उसका बाल भी बाँका नहीं होने देते ।
प्रसंग श्री महाभारतजी के युद्ध का है । प्रभु
श्री कृष्णजी के संरक्षण में पांडवों ने कौरव सेना और कौरव महारथियों का सफाया कर
दिया । केवल दुर्योधन घायल अवस्था में बचा था और वह जाकर एक तालाब में छिप गया । प्रभु
यह जानते थे और वे पांचों पांडवों को लेकर तालाब पर गए । पांडवों ने दुर्योधन को
युद्ध के लिए ललकारा । दुर्योधन तालाब से बाहर आया तो श्री युधिष्ठिरजी ने उससे
कहा कि हम पांचों में से किसी एक को गदा युद्ध करने के लिए चुन लो । प्रभु तुरंत
भाप गए कि श्री युधिष्ठिरजी ने आवेश में गलत कह दिया । दुर्योधन प्रभु श्री
बलरामजी से गदा युद्ध सीखा हुआ है और बहुत बलवान है और श्री युधिष्ठिरजी, श्री अर्जुनजी, श्री नकुलजी और श्री
सहदेवजी को आसानी से गदा युद्ध में परास्त करके मार सकता है । पांडवों का एक प्रण था
कि एक पांडव भी अगर मारा जाता है तो युद्ध बंद कर बाकी बचे हुए चारों पांडव अग्नि
प्रवेश करेंगे । प्रभु ने देखा कि अगर दुर्योधन ने श्री भीमसेनजी को छोड़ अन्य किसी
अन्य पांडव का चयन कर लिया तो पांडव जीते जिताए युद्ध को हार जाएंगे । प्रभु ने तुरंत
युक्ति की । प्रभु को पता था कि दुर्योधन अपने बल का अभिमानी है इसलिए उसके अभिमान
को जागृत करने के लिए प्रभु ने कहा कि दुर्योधन महायोद्धा है और किसी कमजोर योद्धा
से युद्ध कर अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर कदापि नहीं लगाएगा । दुर्योधन का अभिमान जाग
गया और उसने कहा कि मैं कमजोर से युद्ध नहीं करता मैं तो केवल श्री भीमसेनजी से
युद्ध करूंगा । प्रभु यही चाहते थे । श्री भीमसेनजी ने युद्ध में दुर्योधन को मारा
और पांडव आपत्ति में आने पर भी प्रभु की युक्ति के कारण विजयी हुए । सारांश यह है
कि अगर हम प्रभु की शरण में हैं और कुछ गलत भी कर लेते हैं तो प्रभु युक्ति निकाल
कर हमें बचा लेते हैं ।