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23. हर कर्म में प्रभु का अनुग्रह देखें

हर कर्म में प्रभु का अनुग्रह देखना चाहिए । जब हम प्रभु पर विश्वास करते हैं तो सदैव प्रभु की कृपा हमारा मंगल ही करती है । प्रभु को शास्त्रों में मंगल के भवन और अमंगल को हरने वाला कहा गया है और प्रभु ऐसा ही करते हैं । हमें प्रभु पर विश्वास होना चाहिए कि प्रभु हमारा मंगल करेंगे तो हमारा मंगल होता चला जाएगा । जिस क्रिया में शुरुआत में हमें अपना मंगल दिखाई नहीं देगा वह भी अंत में हमारा मंगल करके ही जाएगा ।

एक राजा के यहाँ एक मंत्री था जो बड़ा प्रभु भक्त था और जो भी होता उसके मुँह से भक्ति का कारण एक ही बात निकलती कि प्रभु ने भली करी । एक बार राजा तलवारबाजी कर रहा था कि उसका अंगूठा कट गया । मंत्री के मुँह से निकल गया प्रभु ने भली करी । राजा गुस्से में आ गया और मंत्री को कारागार में डालने का आदेश दे दिया । जब राजा के सैनिकों ने पकड़ा तो मंत्री ने फिर यही कहा कि प्रभु ने भली करी । हफ्ते भर बात राजा स्वस्थ हुआ तो शिकार खेलने निकला । जंगल में शिकार की तलाश में बहुत आगे तक चला गया और अपने सैनिकों को पीछे छोड़ दिया । वह राह भटक गया और संध्या होने लगी । तभी कुछ डाकुओं ने उसे पकड़ लिया क्योंकि डाकुओं के सरदार को पुत्र प्राप्ति के लिए किसी नरबलि की जरूरत थी । राजा को लाया गया पर उसका अंगूठा कटा देख पंडितजी ने मना कर दिया कि अंग-भंग होने के कारण वह बलि के लिए उपयुक्त नहीं है । राजा को छोड़ दिया गया । राजा को एहसास हुआ कि जब मेरा अंगूठा कटा था तब मंत्री ने कहा था कि प्रभु ने भली करी । अंगूठा न कटा होता तो आज मेरी गर्दन कट जाती । तुरंत उसने राज्य में आकर मंत्री को कारागार से मुक्त किया और माफी मांगी । फिर राजा ने पूछा कि मैंने तुमको कैद किया फिर इसमें प्रभु की कौन-सी कृपा थी ? मंत्री बोला कि मैं कैद नहीं होता तो हमेशा की तरह शिकार में आपके साथ जाता । अंगूठा कटा होने के कारण आप तो बच जाते पर दूसरा नंबर मेरा होता और मेरी बलि हो जाती क्योंकि मैं स्वस्थ था और मेरा कोई अंग-भंग नहीं था । राजा भी उस दिन से प्रभु का भक्त बन गया और मानने लग गया कि हमारी हर क्रिया में प्रभु का अनुग्रह होता है ।

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01. प्रभु के दो बड़े प्रण

प्रभु ने श्रीमद् भगवद् गीताजी में अपने आश्रित का योगक्षेम वहन करने का प्रण लिया है । योगक्षेम दो शब्दों से बना है योग एवं क्षेम । योग का यहाँ अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि उनकी शरण ग्रहण करने वाले को जिस भी चीज की जब भी जरूरत होगी प्रभु उसे उपलब्ध करवाएंगे । क्षेम का अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि उसकी शरण ग्रहण करने वाले के पास जो भी है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे । यह दोनों कितने विलक्षण प्रभु के प्रण हैं कि जब भी जिस भी चीज की उसे जरूरत होगी वह प्रभु पहुँचाएंगे और जो उसके पास है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे । एक संत एक तीर्थ में रहने वाले पंडितजी की एक सत्य कथा सुनाते थे । एक पंडितजी नियमित रूप से मंदिर में श्रीमद् भगवद् गीताजी का पाठ करते थे और जो भी चढ़ावा आ जाता था उससे अपना घर चलाते थे । एक बार ऐसा हुआ कि तीन दिन तक कोई चढ़ावा नहीं आया और घर का चूल्हा बंद हो गया । उनकी पत्नी जो उनके जैसे श्रद्धावाली नहीं थी वह बिगड़ गई कि आपके प्रभु ऐसा योगक्षेम वहन करते हैं । पंडितजी को भी पत्नी की बात सुनकर उस समय गुस्सा आ गया और वे रात को मंदिर गए और श्रीमद् भगवद् गीताजी में लिखे योगक्षेम शब्द को ...

04. प्रभु की सेवा

हमारे घर के मंदिर में प्रभु का विग्रह होता है और हम उसकी सेवा करते हैं । सेवा करते - करते कभी हमें अपनी सेवा पर अभिमान आ जाए या लगे कि हम कितनी उत्कृष्ट सेवा कर रहे हैं तो प्रभु उस सेवा को स्वीकार नहीं करते । ऐसा नहीं हो इसलिए एक संत एक प्रसंग सुनाते थे । इस प्रसंग को बीच-बीच में पढ़ते रहना चाहिए । यह प्रसंग प्रभु श्री कृष्णजी और भगवती यशोदा माता के संदर्भ में है । श्री नंद बाबा के पास नौ लाख गौ - माताएं थी । इसमें से श्रेष्ठ नस्ल की एक लाख गौ - माताओं को उन्होंने प्रभु के लिए रखा था यानी   उनका दूध अन्य कोई काम   में नहीं लिया जाता था । एक लाख गौ - माताओं का दूध दस हजार गौ - माताओं को पिलाया जाता था । दस हजार गौ - माताओं का दूध एक हजार गौ - माताओं को पिलाया जाता था । एक हजार गौ - माताओं का दूध सौ गौ - माताओं को पिलाया जाता था । सौ गौ - माताओं का दूध दस गौ - माताओं को पिलाया जाता था । दस गौ - माताओं का दूध एक गौ - माता को पिलाया जाता था इन एक गौ - माता को पद्मगंधा गौ - माता कहा जाता था । इन पद्मगंधा गौ - माता का दूध प्रभु को पिलाने के लिए, दही, छाछ, मक्खन के लिए उपयोग में लि...

20. हर जगह प्रभु को साथ रखें

एक आदत बना लें कि जब भी घर से निकलें तो मन में कहें कि प्रभु साथ चलें और मार्गदर्शन करें ताकि मैं कोई गलती न कर बैठूं । घर में रहें तो प्रभु की  मनोमय (मन में बनाई गई प्रभु की प्रतिमा)  प्रतिमा अपने कार्यस्थल में लगा कर रखें और बीच-बीच में कार्य करते-करते प्रभु को देखें और बात करें कि मैं सही कार्य कर रहा हूँ की नहीं । पांडवों ने प्रभु श्री कृष्णजी को सदैव अपने साथ रखा और प्रभु ने पग-पग पर उनकी रक्षा की ।   सौ कौरव मारे गए पर पांचो पांडव प्रभु कृपा से बच गए । भगवती कुंतीजी , जो पांडवों की माता थी , उन्होंने प्रभु का एहसान मानते हुए सारे प्रसंग गिनाए जब प्रभु ने साक्षात रूप से पांडवों के प्राणों की रक्षा की । इतना बड़ा युद्ध , अपने से विशाल सेना और अनेक महारथियों के होने के बाद भी प्रभु के कारण पांडवों को विजयश्री मिली , वो भी प्रभु के बिना शस्त्र उठाए । पर पांडव एक जगह प्रभु को बिना लिए और प्रभु को बिना पूछे गए और फंस गए । यह प्रसंग था जुए के न्‍योते का जो उनके ताऊजी धृतराष्ट्र ने भिजवाया था । अगर वे प्रभु से पूछते तो प्रभु मना कर देते कि नहीं जाना है । अगर पांडव दुह...