पुराने लोगों में प्रभु की जय बोलने की आदत होती
थी । वे सोते-उठते, चलते-फिरते, खाते-पीते प्रभु की जय बोलते थे । यह सिद्धांत है
कि प्रभु की निरंतर जय बोलने वाले के जीवन में निरंतर जय होती है । उसका मंगल-ही-मंगल
होता है और कभी अमंगल नहीं होता । यह एक बहुत अच्छी आदत है जिसे जीवन में हमें भी
अपनानी चाहिए ।
एक राजा का बड़ा बगीचा था जिसमें बहुत तरह के फल-फूल
लगे थे । बहुत सारे माली काम करते थे । उसके प्रधान माली की आदत थी कि हर समय
प्रभु की जय बोलता रहता था । प्रत्येक रविवार प्रधान माली टोकरी में फल लेकर राजमहल
जाता और चूंकि राजा फलों का शौकीन था सो वह फल खाता था । एक रविवार माली ने सोचा कि आज कौन-सा फल लेकर जाऊं ? उसने नजर
दौड़ाई और नारियल ले जाने का मन हुआ तभी उसके मुँह से निकल गया कि प्रभु की जय हो ।
उसका मन बदल गया और वह नारियल की जगह अंगूर की टोकरी लेकर राजमहल गया । राजा विनोदी स्वभाव का था, उसने अपने प्रिय माली को पास बैठा लिया । वह एक अंगूर खाता और एक अंगूर विनोद में माली के माथे पर मारता । माली के माथे पर जैसे ही अंगूर लगता वह कहता प्रभु की जय हो । राजा से रहा
नहीं गया और कुछ समय बाद उसने अपने प्रिय माली से पूछ ही लिया कि मैं विनोद में
अंगूर तुम्हारे माथे पर मार रहा हूँ और तुम कह रहे हो कि प्रभु की जय
हो । माली ने कहा कि मैं तो आज नारियल का टोकरा लाने वाला था पर प्रभु ने मेरी बुद्धि फेरी और मैं अंगूर
लेकर आया । आज मैं नारियल ले आता तो मेरे सिर की क्या दशा होती इसलिए मैं प्रत्येक
अंगूर माथे पर लगने पर प्रभु की जय बोल रहा हूँ और प्रभु को धन्यवाद दे रहा हूँ कि
प्रभु ने कैसे मुझे प्रेरणा देकर बचाया । सच है, प्रभु की जय बोलने से सदा हमारी
जय होती है और किसी भी परिस्थिति में हमारी पराजय नहीं होती ।