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26. नास्तिक से आस्तिक

बहुत सारे लोग बचपन में नास्तिक होते हैं पर उन पर प्रभु कृपा करते हैं और उनके जीवन में वे प्रभु का कुछ ऐसा चमत्कार देखते हैं जिससे प्रभु के लिए आस्था कायम हो जाती है । आज ऐसी ही एक कथा आपको सुनाते हैं ।

एक शहर में एक अंग्रेजी दवाई की दुकान थी जिसका मालिक प्रभु का भक्त था । वह रोज सुबह और शाम दुकान में प्रभु की फोटो के आगे अगरबत्ती लगाता, हाथ जोड़ता और पाठ करता । यह देखकर उसका इकलौता बेटा मुस्कुराता क्योंकि वह नास्तिक था । पिता बूढ़ा हो गया था और जब अंत समय आया तो उसने अपने बेटे को बुलाया और कहा कि दुकान पर प्रभु की फोटो को देखकर हाथ जोड़ने और अगरबत्ती लगाने का नियम मुझे वचन के रूप में दो । अपने पिता की अंतिम इच्छा मानते हुए बेटे ने वचन स्वीकार कर लिया । पिता का देहांत हो गया और बेटा दुकान संभालने लगा । वह बिना मन के पिता को दि वचन को निभाने के लिए प्रभु की फोटो पर रोज दो समय हाथ जोड़ता और अगरबत्ती लगाता । एक बार शाम 7 बजे बिजली चली गई और दुकान में अंधेरा छा गया । तभी एक आदमी आया और डॉक्टर की पर्ची दिखाकर कहा कि मेरी बूढ़ी माँ बहुत बीमार है और डॉक्टर ने कहा है कि घंटे भर में यह दवाई नहीं पिलाई तो माँ का बचना मुश्किल है । बेटे ने टॉर्च की रोशनी से पर्ची देखी, दवाई उसके पास थी और उसने पैसे लेकर दवाई की शीशी उस आदमी को दे दी । 10 मिनट बाद बिजली आई तो बेटा यह देखकर सन्न रह गया कि अंधेरे में गलती से उसने चूहे मारने की शीशी यानी जहर दे दिया है । उस आदमी का घर उसे पता नहीं था और उसके मन में विचार आया कि अब तक तो वह घर पहुँच गया होगा और उसकी माँ को दवाई यानी जहर पिला दिया होगा और वह बीमार माँ मर गई होगी । पसीने से लथपथ कांपते हुए प्रभु की फोटो के सामने जाकर सच्चे मन से जीवन में पहली बार प्रभु से प्रार्थना की कि ऐसा अनर्थ होने से रोक ले । तभी उसे उस आदमी की आवाज सुनाई दी । आदमी बोला कि वह अंधेरे में जा रहा था, फिसल गया, दवाई की शीशी गिर गई और फूट गई और दवाई रास्ते में बिखर गई इसलिए दोबारा उसी दवाई की शीशी दे दो । बेटे ने इस बार रोशनी में सही दवाई दे दी और प्रभु का धन्यवाद किया कि मेरे जहर देने के बाद भी आपने कृपा करके उसे माँ के मुँह तक नहीं पहुँचने दिया । इस घटना के बाद वह बेटा अपने पिता की तरह पूरा आस्तिक बन गया और प्रभु पर उसका विश्वास अटूट और दृढ़ हो गया ।

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01. प्रभु के दो बड़े प्रण

प्रभु ने श्रीमद् भगवद् गीताजी में अपने आश्रित का योगक्षेम वहन करने का प्रण लिया है । योगक्षेम दो शब्दों से बना है योग एवं क्षेम । योग का यहाँ अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि उनकी शरण ग्रहण करने वाले को जिस भी चीज की जब भी जरूरत होगी प्रभु उसे उपलब्ध करवाएंगे । क्षेम का अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि उसकी शरण ग्रहण करने वाले के पास जो भी है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे । यह दोनों कितने विलक्षण प्रभु के प्रण हैं कि जब भी जिस भी चीज की उसे जरूरत होगी वह प्रभु पहुँचाएंगे और जो उसके पास है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे । एक संत एक तीर्थ में रहने वाले पंडितजी की एक सत्य कथा सुनाते थे । एक पंडितजी नियमित रूप से मंदिर में श्रीमद् भगवद् गीताजी का पाठ करते थे और जो भी चढ़ावा आ जाता था उससे अपना घर चलाते थे । एक बार ऐसा हुआ कि तीन दिन तक कोई चढ़ावा नहीं आया और घर का चूल्हा बंद हो गया । उनकी पत्नी जो उनके जैसे श्रद्धावाली नहीं थी वह बिगड़ गई कि आपके प्रभु ऐसा योगक्षेम वहन करते हैं । पंडितजी को भी पत्नी की बात सुनकर उस समय गुस्सा आ गया और वे रात को मंदिर गए और श्रीमद् भगवद् गीताजी में लिखे योगक्षेम शब्द को ...

04. प्रभु की सेवा

हमारे घर के मंदिर में प्रभु का विग्रह होता है और हम उसकी सेवा करते हैं । सेवा करते - करते कभी हमें अपनी सेवा पर अभिमान आ जाए या लगे कि हम कितनी उत्कृष्ट सेवा कर रहे हैं तो प्रभु उस सेवा को स्वीकार नहीं करते । ऐसा नहीं हो इसलिए एक संत एक प्रसंग सुनाते थे । इस प्रसंग को बीच-बीच में पढ़ते रहना चाहिए । यह प्रसंग प्रभु श्री कृष्णजी और भगवती यशोदा माता के संदर्भ में है । श्री नंद बाबा के पास नौ लाख गौ - माताएं थी । इसमें से श्रेष्ठ नस्ल की एक लाख गौ - माताओं को उन्होंने प्रभु के लिए रखा था यानी   उनका दूध अन्य कोई काम   में नहीं लिया जाता था । एक लाख गौ - माताओं का दूध दस हजार गौ - माताओं को पिलाया जाता था । दस हजार गौ - माताओं का दूध एक हजार गौ - माताओं को पिलाया जाता था । एक हजार गौ - माताओं का दूध सौ गौ - माताओं को पिलाया जाता था । सौ गौ - माताओं का दूध दस गौ - माताओं को पिलाया जाता था । दस गौ - माताओं का दूध एक गौ - माता को पिलाया जाता था इन एक गौ - माता को पद्मगंधा गौ - माता कहा जाता था । इन पद्मगंधा गौ - माता का दूध प्रभु को पिलाने के लिए, दही, छाछ, मक्खन के लिए उपयोग में लि...

20. हर जगह प्रभु को साथ रखें

एक आदत बना लें कि जब भी घर से निकलें तो मन में कहें कि प्रभु साथ चलें और मार्गदर्शन करें ताकि मैं कोई गलती न कर बैठूं । घर में रहें तो प्रभु की  मनोमय (मन में बनाई गई प्रभु की प्रतिमा)  प्रतिमा अपने कार्यस्थल में लगा कर रखें और बीच-बीच में कार्य करते-करते प्रभु को देखें और बात करें कि मैं सही कार्य कर रहा हूँ की नहीं । पांडवों ने प्रभु श्री कृष्णजी को सदैव अपने साथ रखा और प्रभु ने पग-पग पर उनकी रक्षा की ।   सौ कौरव मारे गए पर पांचो पांडव प्रभु कृपा से बच गए । भगवती कुंतीजी , जो पांडवों की माता थी , उन्होंने प्रभु का एहसान मानते हुए सारे प्रसंग गिनाए जब प्रभु ने साक्षात रूप से पांडवों के प्राणों की रक्षा की । इतना बड़ा युद्ध , अपने से विशाल सेना और अनेक महारथियों के होने के बाद भी प्रभु के कारण पांडवों को विजयश्री मिली , वो भी प्रभु के बिना शस्त्र उठाए । पर पांडव एक जगह प्रभु को बिना लिए और प्रभु को बिना पूछे गए और फंस गए । यह प्रसंग था जुए के न्‍योते का जो उनके ताऊजी धृतराष्ट्र ने भिजवाया था । अगर वे प्रभु से पूछते तो प्रभु मना कर देते कि नहीं जाना है । अगर पांडव दुह...