विकट-से-विकट परिस्थिति में भी प्रभु पर हमारा
विश्वास पूर्ण और अटल होना चाहिए । प्रभु यही देखते हैं कि विपत्ति की बेला पर जीव उन पर कितना अटूट विश्वास कायम रख पाता है । जो ऐसा कर पाते हैं
उन्हें प्रभु की कृपा मिलती है और उनका बाल भी बाँका नहीं होता ।
श्री रामायणजी का प्रसंग है कि जब मेघनाथ की शक्ति श्री लक्ष्मणजी को लगी और प्रभु श्री हनुमानजी संजीवनी लाने गए । संजीवनी लेकर लौटते वक्त बीच में श्री अयोध्याजी पड़ी और प्रभु श्री हनुमानजी कुछ समय के लिए किसी कारणवश वहाँ रुके । उन्होंने युद्ध का समाचार सुनाया और यह बताया कि श्री लक्ष्मणजी को शक्ति लगी है और वैद्यजी ने कहा है कि सूर्योदय तक संजीवनी नहीं आने पर उनके प्राणों पर संकट है । यह बात श्री लक्ष्मणजी की पत्नी भगवती उर्मिलाजी ने सुनी और एक प्रश्न किया कि अभी श्री लक्ष्मणजी किस दशा में हैं । प्रभु श्री हनुमानजी बोले कि प्रभु श्री रामजी ने अपनी गोद में उनका मस्तक रखा हुआ है और श्री लक्ष्मणजी प्रभु श्री रामजी के सामने लेटे हुए हैं । इतना सुनना था कि भगवती उर्मिलाजी हर्षित हो उठी । प्रभु श्री हनुमानजी को भी आश्चर्य हुआ कि इनके पति मूर्छावस्था में हैं और ये हर्षित हो रही हैं । प्रभु श्री हनुमानजी ने जिज्ञासा से पूछा कि देवी आपके हर्ष का कारण मैं जान सकता हूँ । बड़ा मार्मिक उत्तर देते हुए भगवती उर्मिलाजी बोली कि प्रभु की गोद में मेरे पति का मस्तक है तो कुछ भी हो जाए उनका बाल भी बाँका नहीं हो सकता । मेरे पति सदैव प्रभु की शरण में रहे हैं इसलिए कोई प्रतिकूलता, कोई विपदा या कोई विपत्ति उनको परास्त नहीं कर सकती । प्रभु ने अपनी गोद में उनका मस्तक रखा है यह प्रभु की असीम कृपा है क्योंकि यदि प्रभु की दृष्टि मात्र भी पड़ जाए तो भी भयंकर आपदा में भी उस जीव की कोई हानि नहीं हो सकती । हमें भी प्रभु पर ऐसा ही अटूट विश्वास रखना चाहिए ।