अगर हमारे मन में प्रभु के लिए आस्था है तो
प्रभु स्वयं उस आस्था को पूर्ण करने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ते । हमारी आस्था
को प्रभु पूर्ण रूप से निभाते हैं और उस आस्था को मजबूत करते हैं ।
एक बार की घटना है । एक राहगीर का रास्ते में एक्सीडेंट हो गया । उसे काफी चोट लगी और उसने आसपास के
लोगों को पुकारा पर पुलिस के डर से कोई भी नहीं आया । अंत में
लहूलुहान अवस्था में उसने प्रभु को पुकारा और प्रभु स्वयं मनमोहन नाम बनाकर आ गए ।
प्रभु ने उसे अस्पताल पहुँचाया, खर्चे के लिए रुपये दिए, डॉक्टर और दवाई के लिए व्यवस्था की और दो-तीन दिन सेवा करने के बाद जब
वह ठीक हो गया तो प्रभु अंतर्ध्यान हो गए । इस बीच उसके बार-बार पूछने पर प्रभु ने
अपना पता जरूर उसे बताया था कि मैं कहाँ रहता हूँ । तो ठीक होने के बाद जब वह
व्यक्ति उस पते पर मनमोहन को खोजता हुआ गया तो एक मंदिर मिला जो कि प्रभु श्री
मनमोहनजी का ही मंदिर था । अब उस व्यक्ति को समझते देर नहीं लगी कि यह तो साक्षात
प्रभु ही थे जो मदद करने के लिए मनमोहन नाम बनाकर आए थे ।