जब हम प्रभु और माता को पुकारते हैं तो विपत्ति
में या दुविधा में प्रभु और माता स्वयं बिना इंतजार किए हुए हमारी पुकार को सुनकर आते
हैं ।
एक हवेली में पुराने समय में एक सेठजी रहा करते
थे जिनका नाम श्रीरामचंद्र था और उनकी पत्नी का नाम जानकी देवी थी । दोनों बड़े
भक्त थे और बड़े भक्ति भाव से प्रभु और माता की पूजा करते थे । वे उनके बूढ़े पिता
की सेवा भी करते थे । एक बार बूढ़े पिता रात में गर्मी के समय छत पर सो रहे थे कि
उनको प्यास लगी और देखा कि पानी खत्म हो चुका है । वे चलने में असमर्थ थे कि चलकर
रसोई से पानी ले आए, इसलिए उन्होंने अपनी बहू जानकी को आवाज लगाई । उनकी बहू जानकी
गहरी नींद सो रही थी पर उनकी ठाकुरबाड़ी में
सेवित प्रभु श्री रामचंद्रजी और भगवती जानकी माता ने उनकी पुकार तत्काल सुनी और
भगवती जानकी माता मंदिर का जल पात्र लेकर उन्हें जल पिलाने आई । जब सुबह उनकी बहू
आई तो बूढ़े पिता ने कहा कि रात का पानी कितना मीठा और स्वादिष्ट था, कहाँ से लाई
थी । बहु रानी ने कहा कि मैं तो रात में पानी पिलाने आई ही नहीं, मैं तो सोई हुई
थी तब बहुरानी ने मंदिर के पानी की झारी देखी तो समझते देर
नहीं लगी कि यह तो साक्षात भगवती माता जानकी ने आकर उन्हें पानी पिलाया है । संसार
की जानकी हमारी पुकार सुने या न सुने पर जिनका सनातन रूप से जानकी माता नाम है वे
हमारी पुकार जरूर और जरूर सुनती हैं ।