प्रभु ने हमें मानव जन्म दिया है इसका हमें सर्वोत्तम
उपयोग करना चाहिए । हम दुनियादारी और संसार करके इसको व्यर्थ कर सकते हैं या प्रभु
की भक्ति करके इसे सफल कर सकते हैं ।
एक राजा के दो पुत्र थे । एक दिन राजा ने एक
स्वर्ण मोहर दोनों बेटों को अलग-अलग दी और कहा कि अपने महल का एक कमरा इससे भर दो
। शाम तक का समय दिया । पहला बेटे ने सोचा कि एक
स्वर्ण मुद्रा से पूरे कमरे में गंदे कचरे के अलावा कुछ भी नहीं आ पाएगा तो उसने
मजदूर लगाकर शहर का कचरा उस कमरे में जमा करवा दिया । दूसरा बेटा एक स्वर्ण मुद्रा
से घी और बत्ती लेकर आया और कमरे में उसे जला दिया । राजा शाम को आया तो देखा कि पहले बेटे के कमरे से बदबू आ रही है और वह कचरे से भरा हुआ है । दूसरे बेटे के कमरे में
गया तो वह अंधेरा कमरा दीपक की रोशनी से भरा हुआ जगमगा रहा था । राजा बहुत प्रसन्न हुआ और
दूसरे बेटे को गले से लगा लिया । प्रभु ने भी हमें जीवनरूपी स्वर्ण अवसर दिया है ।
हम दुनियादारी करके संसार के कचरे से अपना जीवन भर लेते हैं या भक्ति का दीपक
जलाकर अपने जीवन में आध्यात्मिक प्रकाश कर लेते हैं, यह हमारे ऊपर है । पर जो
भक्ति का दीपक जलाता है प्रभु उसे अपने गले लगा लेते हैं क्योंकि उसने अपने मानव जीवन
का सबसे सफल उपयोग किया है ।