जब हम प्रभु की इच्छा में अपनी इच्छा को मिला
देते हैं तो प्रभु को बहुत अच्छा लगता है और प्रभु इस से अति प्रसन्न होते हैं और
हमारा कल्याण करने के लिए आतुर हो जाते हैं ।
एक संत एक नाव में बैठकर कहीं जा रहे थे । रास्ते
में नदी में लहरें तेज हो गई और नाव भंवर में फंस गई । नाविक
ने कहा कि शायद नाव डूब जाएगी तो संत ने अपने कमंडल से नदी का जल लेकर नाव में
डालना शुरू कर दिया । थोड़ी देर बाद लहरें थम गई और
नाविक ने घोषणा की कि अब हम बच जाएंगे तो संत ने वापस नाव में जो कमंडल से जल डाला
था उसे वापस नदी में डालना शुरू कर दिया । नाविक यह देखकर परेशान हुआ कि संत बुद्धिमान
होते हुए भी विपरीत कार्य क्यों कर रहे हैं । किनारे पहुँचने के बाद नाविक ने हाथ
जोड़कर संत से पूछा तो संत ने कहा कि मैं प्रभु की इच्छा का सम्मान कर रहा था । अगर
प्रभु नाव को डुबाना चाहते थे तो मैं नाव में पानी भरकर उसमें सहयोग कर रहा था और
जब प्रभु ने नाव को बचाने का निश्चय किया तो मैं भी जल निकालकर नाव को बचाने के
लिए प्रयास करने लग गया । सारांश यह है कि संत ने अपनी इच्छा प्रभु की मर्जी से
मिला ली थी जिससे वे प्रतिकूलता में भी शांत रहे और संकट में भी प्रभु से जुड़े
हुए रहे । आखिर प्रभु ने उनका विश्वास देखकर सबको संकट से बचा लिया ।