कभी भी घर की ठाकुरबाड़ी में या मंदिर में दर्शन
करने जाएं तो यह नहीं सोंचे कि हम मूर्ति का दर्शन कर रहे हैं । हमें यह सोचना
चाहिए कि हम साक्षात अनंत कोटी ब्रह्मांड के नायक प्रभु का दर्शन कर रहे हैं ।
अंग्रेजों के जमाने की बात है । राजस्थान के जयपुर
स्थित एक मंदिर में यह बात विख्यात थी कि श्री ठाकुरजी की साक्षात प्रतिमा है । अंग्रेजों
ने इसकी जांच करने के लिए तर्क बुद्धि से एक घड़ी का निर्माण किया जो बैटरी से
नहीं बल्कि हाथ में जो धड़कन होती है जिसे पल्स कहते हैं उससे चलती थी । अंग्रेजों
ने कहा कि यह घड़ी प्रभु के हाथों में पहनाई जाए और अगर यह चलने लगेगी तो हम मान
लेंगे कि प्रभु साक्षात रुप से यहाँ विद्यमान हैं । घड़ी प्रभु को पहनाई गई और वह
घड़ी तत्काल चलने लग गई । आज भी वह घड़ी प्रभु को पहनाई जाती है और वह घड़ी
साक्षात रुप से चलती है और भक्त इसका दर्शन करते हैं जिससे उनका विश्वास पुष्ट हो
जाता है कि प्रभु विग्रह रूप में साक्षात हैं । विग्रह रूप में प्रभु का जो अवतार
है उसे शास्त्रों में अर्चा अवतार कहा गया है यानी वह भी प्रभु का एक अवतार ही है
जो विग्रह रूप में हमने दृष्टिगोचर होता है ।