हम प्रभु से प्रार्थना करते हैं पर कृपा होने का
इंतजार नहीं करते । हर प्रतिकूलता में हम बौखला जाते हैं और भजन
छोड़ देते हैं । क्या विपत्ति में हम भोजन छोड़ते हैं ? क्या बीमारी में हम सांस
लेना छोड़ देते हैं ? पर प्रतिकूलता में हम भजन छोड़ देते हैं । यह कितनी बड़ी
गलती है ।
एक संत एक कथा कहते थे कि एक भिखारी प्रभु का बड़ा
सुंदर भजन गाकर भिक्षा मांगता था । एक दिन एक सेठ के घर गया और भजन गाने लगा । सेठानी
बहुत दयालु थी और हाथ में रोटी लेकर भिक्षा देने जाने लगी पर रुक गई । काफी देर हो
गई वह आगे नहीं गई तो एक नौकर ने पूछा कि आप रोटी हाथ में लेकर रुक क्यों गई ? सेठानी
बोली कि रोटी तो मैं दूंगी, बस जल्दी दे दूंगी तो इतना प्यारा भजन पूरा सुन नहीं पाऊँगी
क्योंकि वह भिखारी रोटी लेकर आगे चला जाएगा । इसलिए जब हम प्रार्थना करते हैं और
प्रतिकूलता खत्म नहीं होती तो हमें भी सोचना चाहिए कि प्रभु को हमारी प्रार्थना
प्यारी लग रही है और वे मन से उसे सुन रहे हैं । जैसे सेठानी से भिखारी को रोटी
मिलना तो तय है वैसे ही प्रभु द्वारा हमारी प्रतिकूलता का निवारण तय है । जैसे भिखारी
मीठा भजन गाकर प्रतीक्षा करता है वैसे ही हमें भी मीठी प्रार्थना करके प्रभु की
कृपा की प्रतीक्षा करनी चाहिए ।