हम कितने बड़े आदमी क्यों न हो पर हमारे पालनहार
तो प्रभु ही हैं । बड़े-से-बड़े पद और प्रतिष्ठा वाले अमीर आदमी और एक छोटी-सी
चींटी सबके पालनहार प्रभु हैं ।
एक सेठजी एक मंदिर के पुजारीजी से किसी बात पर रुष्ट
हो गए और डांटकर उनसे कहा कि तुम्हारा पेट मंदिर में मेरे द्वारा चढ़ाए रुपयों से भरता है । पुजारीजी भक्त हृदय थे तो विनम्र होकर कहा कि
प्रभु ही मेरा पेट भरते हैं और मेरा ही नहीं सभी का पेट भरते हैं । सेठजी ने कहा
कि अगर मैं कमाऊ नहीं और आज जंगल में जाकर बैठ जाऊं तो क्या तुम्हारे प्रभु मेरा
पेट भरेंगे ? पुजारीजी ने कहा जरूर । सेठजी एक जंगल में चले गए और पेड़ पर चढ़ गए ।
दोपहर में एक यात्री आया, पेड़ के नीचे सोया और विश्राम के बाद उठकर गया तो एक
थैला भूलकर छोड़ गया । सेठजी यह सब देख रहे थे । उन्हें जोर से भूख लग चुकी थी
क्योंकि सुबह से वे पेड़ पर बैठे थे और दोपहर का समय हो चला था । कौतूहल में पेड़ से नीचे उतर कर सेठजी ने थैला देखा तो उसमें गरमा-गरम भोजन था । सेठजी ने भोजन किया और तुरंत मंदिर में जाकर पुजारीजी
के पैर पकड़े और कहा कि वे मान गए कि जगत के पालनहार प्रभु ही हैं क्योंकि उन्हें
घोर जंगल में भी प्रभु ने भोजन की कैसे व्यवस्था करवा दी यह उन्होंने अपनी आँखों
से देख लिया है ।