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45. प्रभु को रिझाना

प्रभु भाव और प्रेम से रीझ जाते हैं । प्रभु को रिझाने में प्रेम की अनिवार्यता होती है । प्रभु किसी सांसारिक पदार्थ, धन इत्यादि से नहीं रिझते । अगर हम सांसारिक पदार्थ, धन भी प्रभु को निवेदन करते हैं तो प्रभु उसके पीछे छिपे प्रेम भाव को देखते हैं ।

एक भक्त था जो रोज एक पुष्प प्रभु के मंदिर में पुजारीजी को प्रभु के श्रीकमलचरणों में चढ़ाने के लिए निवेदन करता था । बहुत दिनों से यह उसका नियम था । एक दिन रोजाना की तरह बाजार में पुष्प वाले के पास गया और सबसे मनमोहक पुष्प प्रभु को भाव से वहीं अर्पण कर उसकी कीमत चुकाने लगा । तभी एक सेठजी को भी वही पुष्प अपनी सेठानी के लिए पसंद आ गया । उन्होंने दोगुनी रकम देनी चाही । फूल का दुकानदार लालची था उसने कहा कि दोनों बोली लगा लो और जो जीत जाए वह रकम मुझे देकर फूल ले जाए । वह भक्त प्रभु प्रेम में दीवाना था और वह सेठजी अपनी पत्नी प्रेम में दीवाने थे । क्योंकि उस भक्त ने वह पुष्प भाव से प्रभु को वहीं अर्पण कर दिया था इसलिए प्रभु को अर्पित वस्तु वह छोड़ नहीं सकता था । बोली इतनी बड़ी हो गई कि भक्त को अपना खेत बेचने तक की नौबत आ गई । इतनी बड़ी बोली देखकर सेठजी ने सोचा कि फूल तो दो घंटे में मुरझा जाएगा पर इतनी बड़ी रकम से तो मैं स्वर्ण हार अपनी पत्नी को भेंट कर सकता हूँ । सेठजी बाजी छोड़ कर चले गए । भक्त अपने खेत को बेचकर रकम लेकर आया और फूल के दुकानदार को देकर पुष्प लेकर मंदिर पहुँचा । जैसे ही पुजारीजी नित्य की तरह पुष्प प्रभु के श्रीकमलचरणों में निवेदन करने लगे प्रभु प्रकट हो गए और अपने ही श्रीहाथों से पुष्प को लेकर अपने मस्तक पर धारण किया । प्रभु ने कहा कि अपना सर्वस्व देकर फिर भी प्रेम के कारण लाए इस पुष्प का स्थान मेरे श्रीचरणों में नहीं बल्कि मेरे मस्तक पर है ।

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01. प्रभु के दो बड़े प्रण

प्रभु ने श्रीमद् भगवद् गीताजी में अपने आश्रित का योगक्षेम वहन करने का प्रण लिया है । योगक्षेम दो शब्दों से बना है योग एवं क्षेम । योग का यहाँ अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि उनकी शरण ग्रहण करने वाले को जिस भी चीज की जब भी जरूरत होगी प्रभु उसे उपलब्ध करवाएंगे । क्षेम का अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि उसकी शरण ग्रहण करने वाले के पास जो भी है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे । यह दोनों कितने विलक्षण प्रभु के प्रण हैं कि जब भी जिस भी चीज की उसे जरूरत होगी वह प्रभु पहुँचाएंगे और जो उसके पास है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे । एक संत एक तीर्थ में रहने वाले पंडितजी की एक सत्य कथा सुनाते थे । एक पंडितजी नियमित रूप से मंदिर में श्रीमद् भगवद् गीताजी का पाठ करते थे और जो भी चढ़ावा आ जाता था उससे अपना घर चलाते थे । एक बार ऐसा हुआ कि तीन दिन तक कोई चढ़ावा नहीं आया और घर का चूल्हा बंद हो गया । उनकी पत्नी जो उनके जैसे श्रद्धावाली नहीं थी वह बिगड़ गई कि आपके प्रभु ऐसा योगक्षेम वहन करते हैं । पंडितजी को भी पत्नी की बात सुनकर उस समय गुस्सा आ गया और वे रात को मंदिर गए और श्रीमद् भगवद् गीताजी में लिखे योगक्षेम शब्द को ...

04. प्रभु की सेवा

हमारे घर के मंदिर में प्रभु का विग्रह होता है और हम उसकी सेवा करते हैं । सेवा करते - करते कभी हमें अपनी सेवा पर अभिमान आ जाए या लगे कि हम कितनी उत्कृष्ट सेवा कर रहे हैं तो प्रभु उस सेवा को स्वीकार नहीं करते । ऐसा नहीं हो इसलिए एक संत एक प्रसंग सुनाते थे । इस प्रसंग को बीच-बीच में पढ़ते रहना चाहिए । यह प्रसंग प्रभु श्री कृष्णजी और भगवती यशोदा माता के संदर्भ में है । श्री नंद बाबा के पास नौ लाख गौ - माताएं थी । इसमें से श्रेष्ठ नस्ल की एक लाख गौ - माताओं को उन्होंने प्रभु के लिए रखा था यानी   उनका दूध अन्य कोई काम   में नहीं लिया जाता था । एक लाख गौ - माताओं का दूध दस हजार गौ - माताओं को पिलाया जाता था । दस हजार गौ - माताओं का दूध एक हजार गौ - माताओं को पिलाया जाता था । एक हजार गौ - माताओं का दूध सौ गौ - माताओं को पिलाया जाता था । सौ गौ - माताओं का दूध दस गौ - माताओं को पिलाया जाता था । दस गौ - माताओं का दूध एक गौ - माता को पिलाया जाता था इन एक गौ - माता को पद्मगंधा गौ - माता कहा जाता था । इन पद्मगंधा गौ - माता का दूध प्रभु को पिलाने के लिए, दही, छाछ, मक्खन के लिए उपयोग में लि...

20. हर जगह प्रभु को साथ रखें

एक आदत बना लें कि जब भी घर से निकलें तो मन में कहें कि प्रभु साथ चलें और मार्गदर्शन करें ताकि मैं कोई गलती न कर बैठूं । घर में रहें तो प्रभु की  मनोमय (मन में बनाई गई प्रभु की प्रतिमा)  प्रतिमा अपने कार्यस्थल में लगा कर रखें और बीच-बीच में कार्य करते-करते प्रभु को देखें और बात करें कि मैं सही कार्य कर रहा हूँ की नहीं । पांडवों ने प्रभु श्री कृष्णजी को सदैव अपने साथ रखा और प्रभु ने पग-पग पर उनकी रक्षा की ।   सौ कौरव मारे गए पर पांचो पांडव प्रभु कृपा से बच गए । भगवती कुंतीजी , जो पांडवों की माता थी , उन्होंने प्रभु का एहसान मानते हुए सारे प्रसंग गिनाए जब प्रभु ने साक्षात रूप से पांडवों के प्राणों की रक्षा की । इतना बड़ा युद्ध , अपने से विशाल सेना और अनेक महारथियों के होने के बाद भी प्रभु के कारण पांडवों को विजयश्री मिली , वो भी प्रभु के बिना शस्त्र उठाए । पर पांडव एक जगह प्रभु को बिना लिए और प्रभु को बिना पूछे गए और फंस गए । यह प्रसंग था जुए के न्‍योते का जो उनके ताऊजी धृतराष्ट्र ने भिजवाया था । अगर वे प्रभु से पूछते तो प्रभु मना कर देते कि नहीं जाना है । अगर पांडव दुह...