भक्त के बल प्रभु होते हैं । तात्पर्य यह है कि
भक्तों के संकल्प में प्रभु का बल युक्त हो जाता है । भक्त अपने बल से हार भी जाए
पर प्रभु के बल से जीत जाता है ।
एक ब्राह्मण के घर बच्चे जन्म के बाद जीवित नहीं
रहते थे । श्री अर्जुनजी से जब उस ब्राह्मण ने निवेदन किया तो श्री अर्जुनजी ने उसे
वचन दिया कि अगले बच्चे को बचाने का दायित्व उनका है और अगर वे ऐसा नहीं कर पाए तो
अग्नि में प्रवेश कर जाएंगे । जब बच्चे के जन्म का समय आया तो
श्री अर्जुनजी, जो धनुर्विद्या में पारंगत थे, उन्होंने एक रक्षा कवच अपने बाणों से
उस ब्राह्मण के घर के ऊपर बना दिया । बच्चा जन्मा और मर गया । श्री अर्जुनजी सोचते
रह गए कि काल, वायु कोई भी इस कवच में प्रवेश नहीं कर सकता, फिर बच्चा कैसे मर गया
? वे अग्नि में प्रवेश की तैयारी करने लगे । तभी उनके रक्षक प्रभु श्री कृष्णजी आ
गए । प्रभु ने श्री अर्जुनजी को कहा कि तुमने बच्चे को बचाने के लिए पूरा बल नहीं
लगाया । श्री अर्जुनजी को समझाते हुए प्रभु बोले
कि भक्तों का बल भगवान होते हैं । प्रभु ने श्री अर्जुनजी को कहा कि तुमने
प्रतिज्ञा करने से पहले और कवच बनाने से पहले मुझे याद नहीं किया । श्री अर्जुनजी
को अपनी गलती समझ में आ गई । श्री अर्जुनजी को प्रभु श्री कृष्णजी अपने रथ पर बैठाकर
ले गए और जिस लोक में वह मृत बच्चा पहुँच गया था वहाँ से लाकर प्राण दान देकर उस
ब्राह्मण को लौटाया और अपने भक्त श्री अर्जुनजी के प्राणों की रक्षा की ।