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55. प्रभु नाम का प्रभाव

प्रभु नाम में प्रभु की सारी शक्तियां समाई हुई होती है । प्रभु ने अपने अवतार काल में जितनों का उद्धार किया प्रभु का नाम आज तक उससे भी कई गुना ज्यादा लोगों का उद्धार करता आ रहा है ।

एक प्राचीन कथा है । श्रीराम राज्य की स्थापना हो चुकी थी । श्री काशी नरेश एक बार प्रभु श्री रामजी से मिलने श्री अयोध्याजी पधारे । पहले उन्हें देवर्षि प्रभु श्री नारदजी मिले और उन्हें कहा कि राज्यसभा में सभी को प्रणाम करना पर ऋषि श्री विश्वामित्रजी को अनदेखा कर देना । श्री काशी नरेश ने ऐसा ही किया । ऋषि श्री विश्वामित्रजी रुष्ट हो गए और प्रभु श्री रामजी को शपथ देकर सूर्यास्त तक श्री काशी नरेश का वध करने का वचन ले लिया । श्री काशी नरेश भागे तो फिर देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने उन्हें भगवती अंजना माता की शरण में भेजा । भगवती अंजना माता ने अपने पुत्र प्रभु श्री हनुमानजी से श्री काशी नरेश को बचाने के लिए कहा । प्रभु श्री हनुमानजी प्रभु के नाम की महिमा को भली-भांति जानते थे और वे श्री काशी नरेश को लेकर वापस श्री अयोध्याजी में सरयू माता के पास गए और श्री काशी नरेश को सरयू माता के पावन जल में खड़े होकर लगातार श्रीराम-श्रीराम का जाप करने को कहा । उन्होंने कहा कि प्रभु के आने पर और प्रभु द्वारा बाण चलाने पर भी जप करना नहीं छोड़ें । सूर्यास्त के पूर्व प्रभु श्री रामजी, तीनों भाई, ऋषि श्री विश्वामित्रजी, गुरुदेव श्री वशिष्ठजी के साथ वहाँ पहुँचे जहाँ श्री काशी नरेश नाम जप कर रहे थे । प्रभु ने अपना अमोघ श्री रामबाण छोड़ा । बाण श्री काशी नरेश की परिक्रमा करके प्रभु के तरकश में वापस लौट आया । देवर्षि प्रभु श्री नारदजी तब उपस्थित हुए और कहा कि प्रभु नाम का प्रभाव जग जाहिर करने के लिए उन्होंने ही ऐसा करवाया था । ऋषि श्री विश्वामित्रजी का क्रोध तब शांत हुआ और उन्होंने प्रभु को शपथ मुक्त किया और नाम जप के प्रभाव के कारण श्री काशी नरेश सकुशल रहे ।


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01. प्रभु के दो बड़े प्रण

प्रभु ने श्रीमद् भगवद् गीताजी में अपने आश्रित का योगक्षेम वहन करने का प्रण लिया है । योगक्षेम दो शब्दों से बना है योग एवं क्षेम । योग का यहाँ अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि उनकी शरण ग्रहण करने वाले को जिस भी चीज की जब भी जरूरत होगी प्रभु उसे उपलब्ध करवाएंगे । क्षेम का अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि उसकी शरण ग्रहण करने वाले के पास जो भी है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे । यह दोनों कितने विलक्षण प्रभु के प्रण हैं कि जब भी जिस भी चीज की उसे जरूरत होगी वह प्रभु पहुँचाएंगे और जो उसके पास है प्रभु उसकी रक्षा करेंगे । एक संत एक तीर्थ में रहने वाले पंडितजी की एक सत्य कथा सुनाते थे । एक पंडितजी नियमित रूप से मंदिर में श्रीमद् भगवद् गीताजी का पाठ करते थे और जो भी चढ़ावा आ जाता था उससे अपना घर चलाते थे । एक बार ऐसा हुआ कि तीन दिन तक कोई चढ़ावा नहीं आया और घर का चूल्हा बंद हो गया । उनकी पत्नी जो उनके जैसे श्रद्धावाली नहीं थी वह बिगड़ गई कि आपके प्रभु ऐसा योगक्षेम वहन करते हैं । पंडितजी को भी पत्नी की बात सुनकर उस समय गुस्सा आ गया और वे रात को मंदिर गए और श्रीमद् भगवद् गीताजी में लिखे योगक्षेम शब्द को ...

04. प्रभु की सेवा

हमारे घर के मंदिर में प्रभु का विग्रह होता है और हम उसकी सेवा करते हैं । सेवा करते - करते कभी हमें अपनी सेवा पर अभिमान आ जाए या लगे कि हम कितनी उत्कृष्ट सेवा कर रहे हैं तो प्रभु उस सेवा को स्वीकार नहीं करते । ऐसा नहीं हो इसलिए एक संत एक प्रसंग सुनाते थे । इस प्रसंग को बीच-बीच में पढ़ते रहना चाहिए । यह प्रसंग प्रभु श्री कृष्णजी और भगवती यशोदा माता के संदर्भ में है । श्री नंद बाबा के पास नौ लाख गौ - माताएं थी । इसमें से श्रेष्ठ नस्ल की एक लाख गौ - माताओं को उन्होंने प्रभु के लिए रखा था यानी   उनका दूध अन्य कोई काम   में नहीं लिया जाता था । एक लाख गौ - माताओं का दूध दस हजार गौ - माताओं को पिलाया जाता था । दस हजार गौ - माताओं का दूध एक हजार गौ - माताओं को पिलाया जाता था । एक हजार गौ - माताओं का दूध सौ गौ - माताओं को पिलाया जाता था । सौ गौ - माताओं का दूध दस गौ - माताओं को पिलाया जाता था । दस गौ - माताओं का दूध एक गौ - माता को पिलाया जाता था इन एक गौ - माता को पद्मगंधा गौ - माता कहा जाता था । इन पद्मगंधा गौ - माता का दूध प्रभु को पिलाने के लिए, दही, छाछ, मक्खन के लिए उपयोग में लि...

20. हर जगह प्रभु को साथ रखें

एक आदत बना लें कि जब भी घर से निकलें तो मन में कहें कि प्रभु साथ चलें और मार्गदर्शन करें ताकि मैं कोई गलती न कर बैठूं । घर में रहें तो प्रभु की  मनोमय (मन में बनाई गई प्रभु की प्रतिमा)  प्रतिमा अपने कार्यस्थल में लगा कर रखें और बीच-बीच में कार्य करते-करते प्रभु को देखें और बात करें कि मैं सही कार्य कर रहा हूँ की नहीं । पांडवों ने प्रभु श्री कृष्णजी को सदैव अपने साथ रखा और प्रभु ने पग-पग पर उनकी रक्षा की ।   सौ कौरव मारे गए पर पांचो पांडव प्रभु कृपा से बच गए । भगवती कुंतीजी , जो पांडवों की माता थी , उन्होंने प्रभु का एहसान मानते हुए सारे प्रसंग गिनाए जब प्रभु ने साक्षात रूप से पांडवों के प्राणों की रक्षा की । इतना बड़ा युद्ध , अपने से विशाल सेना और अनेक महारथियों के होने के बाद भी प्रभु के कारण पांडवों को विजयश्री मिली , वो भी प्रभु के बिना शस्त्र उठाए । पर पांडव एक जगह प्रभु को बिना लिए और प्रभु को बिना पूछे गए और फंस गए । यह प्रसंग था जुए के न्‍योते का जो उनके ताऊजी धृतराष्ट्र ने भिजवाया था । अगर वे प्रभु से पूछते तो प्रभु मना कर देते कि नहीं जाना है । अगर पांडव दुह...