प्रभु नाम में प्रभु की सारी शक्तियां समाई हुई
होती है । प्रभु ने अपने अवतार काल में जितनों का उद्धार किया प्रभु का नाम आज तक
उससे भी कई गुना ज्यादा लोगों का उद्धार करता आ रहा है ।
एक प्राचीन कथा है । श्रीराम राज्य की स्थापना
हो चुकी थी । श्री काशी नरेश एक बार प्रभु श्री रामजी से मिलने श्री अयोध्याजी
पधारे । पहले उन्हें देवर्षि प्रभु श्री नारदजी मिले और उन्हें कहा कि राज्यसभा
में सभी को प्रणाम करना पर ऋषि श्री विश्वामित्रजी को अनदेखा कर देना । श्री काशी
नरेश ने ऐसा ही किया । ऋषि श्री विश्वामित्रजी रुष्ट हो गए और प्रभु श्री रामजी को
शपथ देकर सूर्यास्त तक श्री काशी नरेश का वध करने का वचन ले लिया । श्री काशी नरेश
भागे तो फिर देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने उन्हें भगवती अंजना माता की शरण
में भेजा । भगवती अंजना माता ने अपने पुत्र प्रभु श्री हनुमानजी से श्री काशी नरेश
को बचाने के लिए कहा । प्रभु श्री हनुमानजी प्रभु के नाम की महिमा को भली-भांति
जानते थे और वे श्री काशी नरेश को लेकर वापस श्री अयोध्याजी में सरयू माता के पास
गए और श्री काशी नरेश को सरयू माता के पावन जल में खड़े होकर लगातार श्रीराम-श्रीराम
का जाप करने को कहा । उन्होंने कहा कि प्रभु के आने पर और प्रभु द्वारा बाण चलाने पर भी जप करना नहीं छोड़ें । सूर्यास्त के
पूर्व प्रभु श्री रामजी, तीनों भाई, ऋषि श्री विश्वामित्रजी, गुरुदेव श्री
वशिष्ठजी के साथ वहाँ पहुँचे जहाँ श्री काशी नरेश नाम जप कर रहे थे । प्रभु ने
अपना अमोघ श्री रामबाण छोड़ा । बाण श्री काशी नरेश की परिक्रमा करके प्रभु के तरकश
में वापस लौट आया । देवर्षि प्रभु श्री नारदजी तब उपस्थित हुए और कहा कि प्रभु नाम
का प्रभाव जग जाहिर करने के लिए उन्होंने ही ऐसा करवाया था । ऋषि श्री
विश्वामित्रजी का क्रोध तब शांत हुआ और उन्होंने प्रभु को शपथ मुक्त किया और नाम
जप के प्रभाव के कारण श्री काशी नरेश सकुशल रहे ।