प्रभु एक नहीं बल्कि
कोटि-कोटि ब्रह्मांडों के मालिक और निर्माता हैं ।
हम थोड़ी-सी जमीन-जायदाद रूपी संपत्ति पाकर गर्व करने लगते हैं और उसका अहंकार कर
लेते हैं जो बिलकुल गलत है ।
एक संत एक कथा सुनाते थे । एक राजा था जिसका
राज्य काफी बड़ा और फैला हुआ था । उसे घमंड था कि वह एक बहुत बड़ा राजा है । एक
महात्मा उसके राज्य की सीमा पर आए और अपने शिष्यों के साथ कुछ समय ठहरे । वे एक सिद्ध
महात्मा थे जिनकी ख्याति फैली हुई थी । राजा उनसे मिलने भेंट सामग्री लेकर गया । मिलने
पर राजा के अहंकार को भांपते महात्मा को देर न लगी क्योंकि राजा ने अपना परिचय यह कह कर दिया कि इस विशाल
साम्राज्य का मैं राजा हूँ । महात्मा ने राजा से कहा कि विश्व का नक्शा मंगवाओ और
उसमें मुझे तुम्हारा राज्य दिखाओ । राजा ने नक्शा मंगवाया और उसका बड़ा राज्य
उसमें एक बिंदु सामान था । तब महात्मा ने कहा कि मेरे जो राजा हैं यानी प्रभु उनका
साम्राज्य इस नक्शे जैसे कोटि-कोटि नक्शों में भी नहीं समा
सकता । राजा को अपनी गलती महसूस हुई, उसका अहंकार चूर हुआ और वह लज्जित हुआ ।