भक्ति शब्द का प्रयोग सनातन धर्म के हर शास्त्र
और श्रीग्रंथ में बड़ी श्रद्धा के साथ किया गया है । पर भक्ति किसे कहते हैं, सबसे
सरल भाषा में हम भक्ति को समझने का प्रयास करते हैं ।
वैसे तो भक्ति की बहुत बड़ी व्याख्याएं हैं । पर
जो सबसे समझने योग्य और सरल है वह यह है कि सबसे सरलतम भाषा में समझे तो प्रभु से
पूर्ण रूप से प्रेम करना ही भक्ति है । हम सभी प्रेम करना जानते हैं । कोई सांसारिक
रिश्तों से प्रेम करता है, कोई धन से प्रेम करता है, कोई अन्य सांसारिक पदार्थों
से प्रेम करता है । हमें बस उस प्रेम की दिशा को मोड़कर और बदलकर प्रभु की तरफ कर
देना है यानी प्रभु से प्रेम करना ही भक्ति है । देखिए कितना सरल है भक्ति करना । प्रभु
हमसे सिर्फ प्रेम चाहते हैं । प्रभु से पूर्ण प्रेम करने लग जाए तो प्रभु तत्काल
संतुष्ट हो जाते हैं और हमारी भक्ति सिद्ध हो जाती है । पर दुर्भाग्यवश इतना सरल
होने पर भी हम ऐसा नहीं कर पाते । हमें केवल और केवल प्रेम की दिशा को बदलना है,
अन्य कुछ भी नहीं करना क्योंकि प्रेम करना सभी जीवों को आता है । बस वह प्रेम
प्रभु से हो जाए तो हम भक्ति में सफल हो जाते हैं ।