प्रभु द्वारा श्रीमद् भगवद् गीताजी में भक्तों का योगक्षेम वहन करने का प्रण
लिया हुआ है । यह एक अदभुत प्रण है जिसके अलावा हमें प्रभु से कुछ अन्य चाहने की
जरूरत ही नहीं होती । प्रभु के इस एक प्रण में सब कुछ समाहित है ।
योगक्षेम संस्कृत का शब्द है और दो शब्दों से बना है । पहला शब्द है “योग”
जिसका अर्थ है कि अप्राप्त की प्राप्ति करना । यानी प्रभु वचन देते हैं कि जो भक्त
उनकी शरण में है उसे जब भी, जिस भी
चीज की आवश्यकता पड़ेगी प्रभु उसे उपलब्ध कराएंगे । आज से दस वर्ष बाद भी जिस चीज
की आवश्यकता है वह हमें आज परिश्रम के बाद भी शायद नहीं मिले पर निर्धारित समय पर प्रभु
अवश्य उसे प्रदान करेंगे । दूसरा शब्द “क्षेम” है जिसका अर्थ है कि जो हमें प्राप्त
है प्रभु कृपा करके उसकी रक्षा और संरक्षण करेंगे । यह कितना बड़ा आश्वासन है नहीं
तो प्रारब्ध राजा को रंक बना देता है । प्रभु के इन दो आश्वासनों के अलावा देखा जाए तो एक भक्त को और कुछ भी नहीं चाहिए ।
सभी बातें पूर्ण रूप से इन दो आश्वासनों में आ गई । जो अप्राप्त है उसे प्रभु
प्राप्त करा देंगे और जो प्राप्त है उसकी प्रभु रक्षा करेंगे । जरूरत है तो बस
प्रभु की शरणागति ग्रहण करने की जिससे हमारे योगक्षेम का भार प्रभु उठा लेवें ।