हम संसार में शांति और आनंद खोजते हैं पर हमें नहीं मिलती क्योंकि जो चीज जहाँ
पर नहीं होगी वह वहाँ से कैसे मिलेगी ? जो सामान एक कमरे में नहीं है उसे कितना भी
आप खोजिए वह वहाँ पर कभी नहीं मिलेगा ।
एक संत एक कथा सुनाते थे । जब प्रभु ने सृष्टि बनाई तो प्रभु श्री नारायणजी के आदेश से उनके श्रीकमलचरणों
से निकलकर ऐश्वर्य, श्री, कीर्ति इत्यादि सभी पृथ्वीलोक में चले गए । भगवती
लक्ष्मी माता प्रभु के श्रीकमलचरणों की सेवा कर रही थीं । उन्होंने ध्यान लगाकर देखा
कि कुछ तो प्रभु के श्रीकमलचरणों में चिपका रह गया जो पृथ्वीलोक में नहीं गया । ध्यान
लगाकर देखने पर ज्ञात हुआ कि शांति और आनंद पृथ्वीलोक में नहीं गए और प्रभु के
श्रीकमलचरणों में ही चिपके रह गए । हम शांति और आनंद संसार में खोजते हैं पर वह तो
हमारा मस्तक प्रभु के श्रीकमलचरणों में झुकने पर ही हमें मिल सकते हैं । इसलिए हमें गलत जगह पर यानी संसार में शांति
और आनंद को खोजने का प्रयास नहीं करना चाहिए । हमें अपना मस्तक प्रभु के श्रीकमलचरणों
में झुकना चाहिए तो ही हमें प्रसाद रूप में प्रभु से शांति और आनंद की प्राप्ति हो
पाएगी ।