उम्र आने पर भी हम संसार में उलझे रहते हैं और मानव जीवन के उद्देश्य भगवत् प्राप्ति की तरफ हमारा ध्यान ही नहीं जाता । जब कोई हमें आगाह करता है तो हमारा एक ही उत्तर होता है कि क्या करूं संसार के कामों में इतना व्यस्त हूँ कि प्रभु के लिए समय ही नहीं निकल पाता ।
एक सेठजी एक संत के शिष्य थे । संत उन्हें बार-बार कहते थे कि अब आपके बेटे काम संभाल चुके
हैं और आपकी आयु भी अधिक हो गई है तो अब आपको संसार की दुनियादारी छोड़कर भगवत् प्राप्ति
के उद्देश्य से प्रभु की भक्ति करनी चाहिए । जितनी बार भी संत ऐसा सेठजी को समझाते सेठजी एक ही बात कहते
थे कि चाहता तो मैं भी हूँ पर
संसार मुझे छोड़ता ही नहीं । एक बार संत उनके घर पर एक रात रूके । सुबह जब प्रस्थान का समय आया तो संत एक खंभे को पकड़कर चिपक गए और कहने लगे कि खंभे ने मुझे पकड़ लिया । सेठजी तुरंत बोल पड़े कि
गुरुजी आप खंभे को छोड़ दें तो खंभा भी आपको छोड़ देगा । संत बोले कि यही मैं तुमको बताना चाहता हूँ कि तुम संसार
में मत उलझो, संसार को छोड़ दो तो संसार भी तत्काल तुम्हें छोड़ देगा । संत ने आगे कहा कि संसार ने
तुमको नहीं पकड़ा है अपितु जैसे मैंने खंभे को पकड़ा है वैसे ही तुमने संसार को पकड़ रखा है । जैसे मैं खंभे को छोड़कर आजाद हो गया वैसे ही तुम भी संसार को छोड़कर
आजाद हो सकते हो । सेठजी को बात समझ में आ गई और वे भगवत् प्राप्ति के लक्ष्य को
लेकर प्रभु की भक्ति में लग गए ।