हम अपने बल, बुद्धि और
पुरुषार्थ पर भरोसा करते हैं जबकि अगर हमें जीतना है तो प्रभु पर भरोसा करना चाहिए
। हमें अपने बल, बुद्धि और पुरुषार्थ को भूलना पड़ता है तब जाकर प्रभु पर सच्चा
भरोसा कर पाएंगे ।
श्री महाभारतजी का प्रसंग
है । दुर्योधन के उकसाने पर श्री भीष्म पितामह ने प्रतिज्ञा कर ली कि
कल के युद्ध में एक पांडव को मारूंगा । प्रभु को पता था कि इसका अर्थ है श्री अर्जुनजी
क्योंकि और कोई पांडव तो उनके सामने टिक ही नहीं सकते । उस रात श्री अर्जुनजी
निश्चित होकर खर्राटे लेकर सो गए । प्रभु शिविर में चक्कर लगाकर सोचने लगे कि
दोनों तरफ परम भागवत् और भक्त हैं । एक का प्राण टूटेगा या दूसरे की जान जाएगी । प्रभु
असमंजस में थे कि किसका पक्ष लूं । तब प्रभु ने युक्ति करते हुए श्री अर्जुनजी को
नींद से उठाया और पूछा कि तुम चिंतित नहीं हो भीष्म प्रतिज्ञा सुनकर । श्री
अर्जुनजी ने नींद से आँखें खोली और कहा कि केशव, आप मेरी चिंता कर रहे हो ना इसलिए
मुझे कोई चिंता नहीं है और मुझे निश्चिंत होकर सोने दो । प्रभु को अपना जवाब मिल
गया कि किसका पक्ष लिया जाए । श्री भीष्म पितामह ने अपने बल पर प्रतिज्ञा की थी और
श्री अर्जुनजी प्रभु के बल और भरोसे पर निश्चिंत होकर सोए थे । तब प्रभु ने अपना प्रण
निभाया कि जो अपना बल हारकर प्रभु पर आश्रित हो जाता है उसकी रक्षा प्रभु करते हैं
। प्रभु ने अपने उस प्रण को अंजाम दिया और भीष्म प्रतिज्ञा से श्री अर्जुनजी की
रक्षा हुई ।